लघुकथा

कांता

कांता कोठी के लॉन में बैठी थी , दोनों बेटे दस वर्ष का सोहन और आठ वर्ष का सोम घास पर बैठे सकूल का होम वर्क कर रहे थे . कांता कोई नावल पड़ रही थी . कोठी के गेट के बाहिर सड़क पर लोग इधर उधर जा रहे थे . तभी सोहन एक दम बाहिर की ओर भागा, सोम भी उठ कर जाने लगा . कांता घबरा गई और बोली , किया हुआ ????और खुद भी उठ कर बाहिर आ गई. उस ने देखा एक बुडिया सड़क पर गिरी हुई थी , उस के बैग से आलू मटर और टमाटर आदिक बाहिर गिरे हुए थे . सोहन और सोम बुडिया को उठा रहे थे . कांता ने आ कर बुडिया को धीरे धीरे उठाया , बुडिया के पैर से खून बैह रहा था .बच्चों ने सारी सब्जी बैग में डाल दी थी . कांता बोली , माता जी ! अन्दर आइये , मैं साफ़ कर देती हूँ . अन्दर आ कर उस ने जखम को साफ़ किया और पट्टी कर दी . अब जा कर बुडिया के मुंह से आवाज़ निकली और बोली ” बेटा भगवान् तुमारा भला करे, कितने अछे बचे हैं तुम्हारे , बहुत अछे संस्कार दिए हैं तुम ने इनको “. फिर वोह जाने के लिए तैयार हो गई .कांता बोली , माता जी ! चाए पी कर जाना और फिर वोह चाए बनाने लगी. चाए पी कर बुडिया जाने के लिए तैयार हो गई . कांता बोली , माता जी ,मैं आप को गाडी में छोड़ आउंगी . बुडिया बोली , “बेटा कोई बात नहीं, मैं दूर नहीं रहती , मैं खुद चली जाउंगी ” और वोह चली गई . बच्चे फिर अपना होम वर्क करने लगे और कांता नावल पड़ने लगी लेकिन उस का मन अतीत में खो गिया था . उसे वोह बचपन के दिन याद आ गए जब सभी उस को नफरत किया करते थे . उस का कसूर सिर्फ इतना ही था कि उस का रंग बहुत काला तो था ही साथ ही बदसूरत भी था. दादी माँ को छोड़ कर सभी उस को तंग करते थे. जब उस का मन कभी बहुत उदास हो जाता तो दादी माँ के गले लग जाती और उसे सब दुःख भूल जाते. माँ तो हर वक्त उस के पीछे पड़ी रहती और बोलती रहती ” कहाँ से आ गई यह काली कलूटी हमारे घर में , कैसे इस की शादी करुँगी मैं , कौन इसे लेगा ” .
पड़ाई पूरी भी हो गई थी और वोह एक सकूल टीचर लग गई थी . तीस वर्ष को होने को थी लेकिन कहीं उस का रिश्ता नहीं हो रहा था .बहुत जगह बात चली भी लेकिन काला रंग उस का दुश्मन बना हुआ था . एक दिन छुटी का दिन था और कांता बाज़ार में शौपिंग कर रही थी . अचानक एक साइकल सवार ने एक बूड़े को ठोकर मार कर नीचे फैंक दिया और उसी वक्त भाग गिया . लोग इकठे हो गए और बूड़े को एक बैंच पर बिठा दिया . धीरे धीरे लोग चले गए लेकिन बूडा अपनी टांग को पकडे बैठा रहा . कांता यह सब देख रही थी . कांता दूकान से बाहिर निकली और देखा बूड़े की टांग से खून बह रहा था . कांता बूड़े के पास आई और बोली ” ओह माई गौड़ , दादा जी ! आप के तो खून बैह रहा है, यह तो सैप्टिक हो जाएगा , चलो मैं तुम्हें डाक्टर के पास ले चलूँ ” और बूड़े के नाह नाह करते उस ने रिक्शा मंगवाया और डाक्टर के पास ले गई . डाक्टर ने जखम को साफ़ किया, दवाई लाइ और पट्टी कर दी . तभी एक नौजवान आया और आते ही बोला, ” दादा जी मैं आप को कब का ढून्ढ रहा हूँ और यह किया हुआ ?” बूड़े ने सारी बात बताई और कहा ” इस बेटी का धन्यवाद करो , यह कोई भले घर की लड़की है वर्ना इस ज़माने में कौन किसी के बारे में सोचता है ” नौजवान ने हाथ जोड़ कर कांता का धन्यवाद किया और बजुर्ग को लेकर चला गिया .
इस घटना को कई महीने हो गए थे और वोह इस को भूल गई थी .ऐसे ही एक दिन फिर वोह बाज़ार में शौपिंग कर रही थी . जब वोह एक दूकान से बाहिर आई तो वोह ही नौजवान सामने खड़ा था . नौजवान ने हाथ जोड़ कर नमस्ते बोला . कांता ने उस के दादा जी के बारे में पुछा तो नौजवान जिस का नाम राकेश था हंस कर बोला , ” दादा जी तो अछे भले हैं लेकिन हर रोज़ तुम को ही याद करते रहते हैं अगर आप बुरा ना मानो तो मैं एक बिनती करना चाहता हूँ” किया ? कांता बोली . बस उस दिन का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ , आप को चाए पिलाना चाहता हूँ . चाहो तो हमारे घर जा कर दादा जी के साथ मिल कर पियें या यहाँ किसी चाए की दूकान में पियें .राकेश की बातों से कांता की झिजक दूर हो गई और बोली , ” चलो यहाँ उस चाए की दूकान पर चलते हैं ” बहुत बातें हुईं और बातों बातों में दोनों को एक दुसरे के बारे में मालूम हो गिया कि दोनों अभी कंवारे हैं .
अब वोह एक दुसरे से मिलने लगे , चाए पीते , गप्पें लगाते और एक दिन राकेश कांता को जिद कर अपने घर ले आया . दादा जी देखते ही खिल उठे , कांता ने दादा जी के चरन स्पर्श किये . दादा जी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था . दादा जी बोले ,” बेटा जी , अब हमेशा के लिए यहाँ ही रह जाओ . इतना बड़ा घर खाली खाली सा लगता है ” कांता की आँखों में आंसू आ गए . दोनों की शादी हो गई थी , राकेश का बिजनैस बहुत अच्छा चल रहा था और फिर दो बेटे भी हो गए थे . दादा जी के जीवन में एक बहार आ गई थी, उन को तो जैसे एक सवर्ग ही मिल गिया था .कांता बहुत खुश थी , फिर भी उन के मन में एक बात हमेशा रहती कि सारी दुनीआं यहाँ तक कि माँ ने भी उस से नफरत की लेकिन राकेश ने उस में किया देखा था?
अजी मेम साहब ! किया नावल इतना दिलचस्प है कि हमारे आने की भी खबर नहीं हुई?. अब नावल रखो और अपने हाथ की एक गर्म गर्म चाए पिला दो . कांता मुस्करा उठी और किचन में चाए बनाने के लिए चल पड़ी .

8 thoughts on “कांता

  • उपासना सियाग

    बहुत सुन्दर , मन में कालापन नहीं होना चाहिए।

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत सुंदर कहानी लगी ….. सकारात्मक अंत उम्दा है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी और प्रेरक कहानी ! भाई साहब आप इसी प्रकार अधिक से अधिक लिखते रहें.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      किशोर जी , आप का बहुत बहुत धन्यवाद .

  • Man Mohan Kumar Arya

    बहुत अच्छी और प्रेरणादायक कहानी। कहानी पढ़कर आँखें सजल हो गयी। इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद। दार्शनिक सिद्धांत है कि रचना को देखकर रचयिता का ज्ञान होता है। इसके आधार पर अनुमान है कि आपका व्यक्तित्व भी आपकी इस रचना के ही समान होगा। आपके मन में इतने सुन्दर विचार उठे यह सोच कर मेरा मन गदगद हो रहा है। आपको बधाई।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन जी , आप का बहुत बहुत धन्यवाद. दरअसल सोमवार को यहाँ के लोकल रेडिओ पर एक टॉपिक था कि यहाँ के बच्चों के रिश्ते कठिन हो रहे हैं , कारण यह है अक्सर हमारी औरतें चाहती हैं कि मेरी बहु चाँद का टुकड़ा हो , करिश्मा कपूर जैसी हो . इसी तरह करते करते , रिश्ते रिजेक्ट करते करते बच्चे तीस पैंतीस की आयु के हो जाते हैं , इसी तरह लड़किओं की आयु ज़िआदा होती चली जाती है. हम ने अपने बच्चों की शादिआन ऐसे नहीं कीं . हम ने बच्चों पर छोड़ दिया था . आप हैरान होंगे कि मेरी लड़की करिश्मा कपूर जैसी ही है लेकिन जो लड़का उस ने पसंद किया वोह मिथुन चकर्वर्ति जैसा है , इसी तरह मेरे लड़के ने जो लड़की पसंद की सांवले रंग की है . मनमोहन जी , यकीन मानो मैं इतना सुखी हूँ और बच्चे इतने खुश हैं कि बता नहीं सकता . बहु तो हमारा इतना करती है कि वोह खुद मुझे गाड़ी में बिठा कर हस्पताल ले जाया करती है और मुझे वील चेअर में बिठा कर कार पार्क से डाक्टर की सर्जरी तक ले जाती है. इसी लिए मैंने यह कहानी लिखी है कि यह रंग रूप को देखना एक मुर्खता है , यह हमारी सोसाएटी में एक पागलपन सा है . इस रंग रूप वाली बात को छोड़ कर बच्चे में गुण संस्कार देखने चाहिए.

      • Man Mohan Kumar Arya

        आपकी पंक्तियों ने मन को छू लिया है। मैं आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ कि तन से अधिक मन का सुन्दर होना आवश्यक है। तन की सुंदरता माता पिता की आकृति तथा आहार, निद्रा, व्यायाम एवं भौगौलिक कारणों पर निर्भर करती है। विवाह में पति पत्नी को जीवन की गाड़ी चलाने के लिए ज्ञान तथा अच्छे संस्कारों की जरुरत पड़ती है। उसमे पति पत्नी के गुण, कर्म व स्वभाव में समानता होना आवश्यक है अन्यथा जीवन की गाड़ी ठीक से चल नहीं पाती। अच्छे गुण, कर्म व स्वभाव का शारीरिक सुंदरता से कुछ अधिक लेना देना नहीं होता है। वैदिक विवाह में पति विवाह संस्कार के अवसर पर वधु का ह्रदय / मन को अपने हाथ से स्पर्श कर कहता है कि हम दोनों के मन वा ह्रदय आज से एक समान होंगे। दोनों के मन, वचन वा कर्म एक जैसे होंगे होंगे। हम दोनों की सोच एक होगी। यही जीवन की सफलता का रहस्य प्रतीत होता है। आपकी विस्तृत मेल वा जानकारी के लिए हार्दिक धन्यवाद। मैं आपके विचारों से पूरी तरह से सहमत हूँ। मैंने वेदो के स्वाध्याय से सम्बंधित लेख आरम्भ कर दिया है। शायद कल आपको युवासुघोष पर दिखाई देगा। आदर सहित।

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