क्षणिका

क्षणिकाएँ

अभिलाषाएँ !!

पतंग सी उड़ती
चीरती मन क्षितिज
गिरती पड़ती
मरती न कभी
नित नए रूप में
धरना दिए बैठती
रहे सदैव अपूर्ण
पूर्णता को व्याकुल
अतृप्त अभिलाषाएँ

धूप !!

जो थी व्याकुल
झरोखे दे दस्तक
झिर्रियों से झाँकती
ख़ामोश सी
भित्ति से टकराव
खुद ब खुद
राह बदल, मिलता
तो क्या ? बस
अस्तित्वहीनता ।

कविता !!

मन के भाव
करुणा अभिव्यक्ति
प्रेम अलगाव
क्षणिक पल
शब्दों की धार
बिखरते पन्ने
अनुभूतियों
की अभिव्यक्ति
अहसास की स्याही
सृजन क्षणिक
कविता बन जाती
मन आधार ।

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

4 thoughts on “क्षणिकाएँ

  • गुंजन अग्रवाल

    many many thnx to all of u fr motivts me 🙂

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अभिलाषाएं बहुत सुन्दर लगीं , गुंजन जी.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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