गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

ये दिल सबका करता स्पंदन।

उस दिल को है मेरा वंदन॥

नगर-नगर में बजा ढिंढोरा।
गली-गली है महका चन्दन॥

प्रेम नगर की है ये भाषा।
हर प्रेमी करता अभिनंदन॥

जात-पात को नहि ये माने।
करलो चाहे जितना क्रंदन॥

अमर रहा है अमर रहेगा।
हर प्रेमी जोड़ी का बंधन॥

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

One thought on “गीतिका

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

Comments are closed.