लघुकथा

दर्द

“बाप दारू पीकर टुन्न हो जाता है, माई लोगो के घरो में चौका बर्तन करके सुबह शाम पेट की अग्नि शांत करने के जुगाड़ में रहती है। पढ़ने की तीव्र इच्छा ना जाने मुझमे क्यूँ पैदा की ऊपर वाले ने। जब लोगो के घरो की गंदगी ही साफ करनी मेरे नसीब में लिखा।” रामू के दिल में पनप रहे दर्द मकान मालिक की नजरो से ना छुप सका था|

मकान मालिक की पत्नी से ये सहन नही हुआ| बोली ”तुम पढने स्कूल जाओगे तो खाओगे क्या ?”

मकान मालिक अब जरुरी काम का बहाना बना कर बाहर निकल गया |

शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

4 thoughts on “दर्द

  • उपासना सियाग

    सबके अपने -अपने मतलब है।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कौन किसी का दर्द समझता है बैहना ! अगर आप की पहली कहानी की तरह कोई नेक इंसान जिंदगी में आ जाए तो किस्मत बदलते देर भी नहीं लगती .

  • विजय कुमार सिंघल

    यथार्थ को व्यक्त करती अच्छी लघुकथा. अपने स्वार्थ के कारण लोगों में समाजसेवा की इच्छा दब जाती है.

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