कविता

मुक्तक

पतंग छाए गगन में, लेकर नव-नव रूप।
सतरंगी माहौल है, प्यारा और अनूप॥
गुड़ तिल और मिठाइयाँ, खावें हैं सब लोग।
मकर राशि में रवि चले, प्यारी लागे धूप॥

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

One thought on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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