कविता

जीवन के ज़ानिब से

IMG_20141014_171534जीवन के ज़ानिब से

सच का सामना आसां तो नहीं

मौत का दामन सुर्ख सा

इन्सान बेपरवाह फिर भी

अश्क के समन्दर में भी

खिलखिलाहट लिए फिरता है|

मौन दरख्त पर

पंख फैलाए हुए परिन्दे

खोखले दरख्तों में

घर किए बैठे हैं|

जीवन की पहेली आसां सी

बस अपना डेरा दूर कहीं

बनाना तो सही

लोगों का जमघट लग जाएगे|

4 thoughts on “जीवन के ज़ानिब से

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • मनोज 'मौन'

      गुरमेल जी धन्यवाद

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

    • मनोज 'मौन'

      विजय जी धन्यवाद

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