कविता

एक मुक्तक

झुकी नज़रों को तेरी, इकरार समझा था ,
खामोश लबों को मैं, इसरार समझा था,
नहीं जानता था सबब इसके पीछे क्या था,
तेरे मुड़कर चले जाने को, प्यार समझा था ।


डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

One thought on “एक मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर मुक्तक !

Comments are closed.