कवितासामाजिक

कवि और कविता संवाद

एक दिन कविता अचानक कवि से
बोली, तुम्हारी नीरसता भरी बातें
मेरे शब्दों का श्रृंगार बिगाड़ देती हैं
कवि ने विस्मयता से कहा,
नीरस क्या लगता है तुम्हे?
कविता बोली, तुम हमेशा मुझे
बलिदान की देवी बना देते हो,
हर बार मेरा आँचल बसंती बना देते हो,
रक्त लिखते हो, उबाल लिखते हो,
कभी कभी ज्वलंत आग फूट पड़ती है,
जब कभी वेदना की भट्टी पर क्रांति की मशाल लिखते हो?
कवि ने फिर प्रश्न किया, किन्तु ये नीरस है तो
रस कहाँ है?
कविता बोली, रस तो है श्रृंगार में,
दो दिलों के प्यार में,
अधरों की गाथा लिखो ना,
वो चुम्बित होता माथा लिखो ना
लिखो ना कि वो बालों का खुलना
लिखो ना वो रंगों का घुलना,
मुझे तुम सजा दो ना फूलों की माला
लिखो ना यौवन रस की हाला
कवि ने कहा, मैं लिखता प्रिये श्रृंगार का रस
लिखने बैठा ही था एक दिन मैं बस
लेकिन तभी चीख सी पड़ी मेरे कानो पर
एक अबला का घनघोर क्रन्दन था,
जिसकी अस्मत अभी अभी तार तार हुयी थी,
जिसके वसन वासना के नाखुनो ने लोंचे थे,
जिसके बाल बिखरे थे, अपनी छाती को ढंककर
नग्न भागती उस दिन भारत की सभ्यता को देखकर
मेरा सीना स्त्री के श्रृंगार से हटकर उसकी वेदना पर उतर आया,
उसे देखकर लोग मुंह फेर लेते थे सड़क पर भागती हुयी वो
किसी गाडी के नीचे आ गयी और मर गयी,
अच्छा ही हुआ जो मर गयी,
यहाँ समाज की बेड़ियों से सड़क पर मुक्ति पाना बेहतर ही तो है,
ऐसी भयंकर मौत देखकर मेरा श्रृंगार का रस सारा बह गया
एक दावानल उठा है, आजतक धधकता है,
चिंगारी जलती बुझती है और बार बार उस चेहरे को याद कर क्रांति लिखती है मेरी कलम,
अब तू ही बता मैं कैसे श्रृंगार लिखूं
कैसे ह्रदय माधुर्य के रसोदगार लिखूं
कविता चुप थी उसकी आँखों में आंसू थे,
शायद शर्मिंदगी के…!!

___सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “कवि और कविता संवाद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत भावुक कविता , सरल शब्द ऊंचे विचार .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार कविता

Comments are closed.