कविता

मुझसे नफ़रत है यारो

आईने को मुझसे नफ़रत है यारो

जबभी मै सामने होता हूँ मुह फेर लेता है

इस रुसवाई का मै क्या करु यारों

दोस्त वो ऐसा है कि न छोड़ सकता हूँ 

बेवफाई का भी दामन पाक है उसका

वफाओ का सितम भी साफ है यारों

दीन हूँ वफाओं जी भरके देख लो 

आईना तो अब साथ देता है कहाँ

One thought on “मुझसे नफ़रत है यारो

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह! रहस्यमय कविता !

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