कविता

कविता : हवा के झोंके



मंद-मंद हवा के झोंके,
छू कर जाते तन को मेरे।
मन में उठते नए विचार,
करता हूँ हवा का आभार।
रूक जा जरा
मैं भी हूँ साथ में,
यही कहता हूँ बार-बार।

कदम से कदम मिलाता चलूँ,
दुःखों को अपने मिटाता चलूँ।
साथ जो तेरा है- ए हवा,
प्यार के गीत गुनगुनाता चलूँ।
मंद-मंद हवा के झोंके।
छू कर जाते तन को मेरे॥

One thought on “कविता : हवा के झोंके

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत सुन्दर !!

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