हास्य व्यंग्य

हास्य गीतिका

कम उमर में बाल आधे झड़ गये।
ब्रश किया पर दाँत पीले पड़ गये।

उनके घर की ओर जब निकले कदम,
ऑटोवाले रास्ते में लड़ गये।

और कितना जिंदगी तड़पाएगी,
गलियों के कुत्ते भी पीछे पड़ गये।

बिस्किटोंपर डेट था ताजा लिखा,
जाने भीतर में ही कैसे सड़ गये।

बेल्ट लोकल था छलावा कर गया,
बीच महफिल शर्म से हम गड़ गये।

भोर से ही लोग हँसते देखकर,
बार्बर जी कुछ तो कर गड़बड़ गये।

हमको जाना ही न था “गौरव” कहीं,
वो सवारी लादनेपर अड़ गये।

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

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