कविता

कुण्डलिया छंद

(1)

मंगलमय हो आपका, आया फिर नव वर्ष

अच्छे दिन आये तभीजीवन में उत्कर्ष |

जीवन में उत्कर्ष, कर्म यदि अच्छे साधे

करे काम को पूर्ण, रहे न अधूरे आधे

लक्षमण साधे कर्म, करे नित होकर तन्मय

खुशिया मिले हजार, वर्ष हो शुभ मंगलमय ||

(2)
अवसर की सत्ता करे, संसद तक षड्यंत्र

संसद तो चलती नहींबाहर पड़ते मन्त्र |

बाहर पढ़ते मन्त्र, देश भक्तों का चोला

नहीं देश का ध्यानभरे अपना ही झोला

लक्ष्मण करता अर्ज,सद्बुद्धि दे अब परवर

बढे देख की साख, भुनाएं अच्छे अवसर |

(3

सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात

सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात |

कैसे बीते रात, सड़क किनारे सोते

निकले कैसे रात, बिलखतें बच्चें रोते

लक्ष्मण को ये कष्ट, हुआ समाज बेदर्दी

रेन बसेरा माय, रुके क्या भीषण सर्दी |

 -लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

 

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- lpladiwala@gmail.com पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)

One thought on “कुण्डलिया छंद

  • विजय कुमार सिंघल

    कुंडली छंद का बेहतर उपयोग किया है आपने.

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