गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : शबनम

 

ख़ुशबू से कह दो फैले यहाँ इख़्तिसार में,
शहज़ादीमहव-ए-ख़्वाबहै टूटे मज़ार में।

शबनम भी आंसुओ की तरह गुल पे छा गई,
कोई उदास कर गया फ़स्ल-ए-बहार में।

ग़म हाथ बांधे सर को झुकाए हैं हर तरफ,
ये कैसी सल्तनत है मेरे इक़तदार में।

अब कोई चश्म-ए-तर का सबब पूछता नहीं,
पथरा गई है आँख मेरी इन्तिज़ार में।

क्या क्या लिखूँ ग़ज़ल में क़लम सोचने लगा,
वो रत जगे कहाँ हैं भला अब शुमार में।

इक जिन्स-ए-ख़्वाब था सो उसे भी किया है सल्ब,
कुछ भी नहीं बचा है मेरे इख्तियार में ।

धड़का है, वाहिमा है, तजस्सुस है, क्या है ये,
इक पल को दिल ये रहता नहीं है क़रार में।

वो सब हिसाब लेने ख़िज़ाँ आई “प्रेम” से,
जितने फ़रेब उसने दिये थे बहार में।

1इख़्तिसार=ख़ुलासा, 2महव-ए-ख़्वाब= सपनों में खोना, 3मज़ार= कब्र, 4शबनम= ओस, 5फ़स्ल-ए-बहार= बहार का मौसम, 6सल्तनत= राज्य, 7इक़तदार= अधिकार, 8 चश्म-ए-तर= आंसू भरी आँखें, 9 शुमार= शामिल, 10 सबब= कारण, 11जिन्स= चीज़, सामग्री, 12 सल्ब= विनाश, 13 इख्तियार= अधिकार, 14 धड़का= डर,15वाहिमा= वहम, 16तजस्सुस= तलाश, 17 क़रार = चैन, 18ख़िज़ाँ=पतझड़

प्रेम लता शर्मा

नाम :- प्रेम लता शर्मा पिता:–स्व. डॉ. दौलत राम "साबिर" पानीपती माता :- वीरां वाली शर्मा जन्म :- 28 दिसम्बर 1947 जन्म स्थान :- लुधियाना (पंजाब) शिक्षा :-एम ए संगीत, फिज़िकल एजुकेशन परिचय :-प्रेमलता जी का जन्म दिसम्बर 1947 बंटवारे के बाद लुधियाना के ब्राह्मण परिवार मैं हुआ। 1970 से 1986 तक शिक्षा विभाग में विभिन्न स्कूलों और कॉलेज में पढ़ाया उसके बाद यु.एस.ए. चले गएँ वहां आई.बी.एम. से रिटायर्ड हैं । छोटी सी उम्र में माता-पिता के साये से वंचित रही हैं । पिता जी अजीम शायर व भाई सुदर्शन पानीपती हिंदी लेखक थें । अपने पिता जी की गजलों को संग्रह कर उनकी रचनाओं की एक पुस्तक ‘हसरतों का गुबार’ प्रकाशित कर चुकी हैं ।भारत से दूर रहने पर भी साहित्य के प्रति लगन रोम रोम में बसा है।

One thought on “ग़ज़ल : शबनम

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया ग़ज़ल । इसमें उर्दू फ़ारसी के कठिन शब्दों की भरमार है । यह अच्छी बात है कि उनके हिंदी अर्थ भी दिये गये हैं, लेकिन यदि सरल शब्दों का उपयोग होता तो बेहतर होता।

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