राजनीति

केजरीवाल मॉडल का भविष्य

 

वेदों में पुरुषार्थ करने का सन्देश है अर्थात परिश्रम करो और जीवन में उन्नति करो। आलसी, मुफ्तखोर, कामचोर को नापसंद किया गया है। केजरीवाल की सोच साम्यवादी सोच से मेल खाती है जिसमें सभी को एक समान दिखाने के चक्कर में सभी को मुफ्तखोर बनाया जा रहा है। जब सभी का परिश्रम एक समान नहीं है, सभी का पुरुषार्थ एक समान नहीं है फिर सभी को पुरुषार्थ का फल एक समान कैसे दिया जा रहा है।

मुफ्त बिजली, पानी जैसी सुविधा केवल उनके लिए जो गरीब है और उसका सारा भोझ केवल उन पर ही डालना जो धनी है एक प्रकार से अमीर-गरीब में राज्य द्वारा भेदभाव करने के समान है। हर व्यक्ति जन्म से धनी नहीं होता मगर अपने परिश्रम से पुरुषार्थ से जीवन में उन्नति करता है। उन्नति करने के पीछे अनेक उद्देश्यों में से एक उद्देश्य अपने जीवन में संसाधनों की कमी को पूरा करना है। प्रथम तो अगर किसी भी व्यक्ति को बिना परिश्रम, बिना मेहनत के बैठे बैठाये संसाधन मिलने लगे तो क्या वह परिश्रम करेगा। कदापि नहीं करेगा अपितु पहले से भी बड़ा कामचोर बनेगा।

दूसरे संसाधन गरीबों को उपलब्ध करवाये जायेंगे वे किधर से आएंगे? वे उनसे आएंगे जो लोग टैक्स के रूप में सरकार को संसाधन जुटाने का सामर्थ्य देते है। इसका निष्कर्ष तो यही निकलता है की सम्पूर्ण समाज के संसाधनों का भार उन चंद लोगों के कन्धों पर होगा जो सरकार को टैक्स देते है। अर्थात परिश्रम कर धनी बनना अभिशाप हो गया और गरीब रहकर बिजली-पानी मुफ्त में लेकर वोट देना ईमानदारी का प्रतीक बन गया है।

इसके दूरगामी परिणामों पर किसी ने अभी तक विचार नहीं किया। जब दिल्ली सरकार का सम्पूर्ण धन सब्सिडी में व्यय हो जायेगा तो नई परियोजनाओं एवं विकास के लिए धन कहाँ से आएगा? न व्यापर की प्रगति होगी, न नई नौकरियां निकलेगी, न लोगों की क्रय शक्ति में बढ़ोतरी होगी। इससे गरीबी, बेरोजगारी और अन्य समस्याएं बढ़ेगी। फिर एक नया नाटक रचा जायेगा। केंद्र सरकार से बड़े से बड़ा पैकेज लेने की अनुचित माँग रखी जाएगी और उस मांग को न मानने पर सड़कों पर धरना-प्रदर्शन किया जायेगा। जिससे यह प्रतीत हो की केंद्र सरकार गरीबों की दुश्मन है और केजरीवाल गरीबों के मसीहा है। देश की प्रगति किस दिशा की और जाएगी पाठक कल्पना कर सकते है।

पाठकों को ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि सम्पूर्ण विश्व में साम्यवाद का सिद्धांत पूर्ण से से किसी भी राष्ट्र को चलाने में असफल रहा है। क्यूंकि समानता के नाम पर, गरीबों के हक के नाम पर धनी लोगों का शोषण करना और गरीबों को मुफ्त में सीमित संसाधनों को बाँटना अव्यवहारिक एवं अदूरदर्शी सोच का परिणाम है।

गरीबों को अगर सहयोग करना ही है तो सबसे पहले शिक्षा, चिकित्सा सुविधा, नौकरी लगने में सुविधा दी जाये। नशा, व्यभिचार, फिल्मों द्वारा मानसिक प्रदुषण से बचाकर सदाचारी जीवन जीने के प्रेरणा देना अति आवश्यक है तभी समाज का सुधार संभव है, मुफ्त पानी-बिजली से केवल अराजकता फैलती है। समाज को मुफ्तखोर के स्थान पर पुरुषार्थी बनाना चाहिए।

डॉ विवेक आर्य

One thought on “केजरीवाल मॉडल का भविष्य

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सही कहा आप ने , SOCIALISM AND COMMUNISM बुरी तरह दुनीआं से फेल हो चुक्का है . यहाँ भी यूनियन का बहुत जोर होता था . देश की बड़ी बड़ी संस्थाएं जैसे रेल बस टेलीफून पोस्ट ऑफिस, और भी बहुत सी संस्थाएं गौरमेंट ओन थी जो हर वक्त घाटे में जाती थी और हकूमत को हर साल बहुत पैसे देने पड़ते थे . एक मिसाल दूँ जिस ट्रांसपोर्ट कंपनी में मैं काम करता था उस में हर साल ९ मिलियन पाऊंड देना पड़ता था , जब इस को मैनेजमेंट बाई आऊट किया गिया तो पहले वर्ष ही ९ मिलियन पाऊंड फ्रौफित हुआ , जिस को सभी वर्कर्ज़ को शेअर की शल्कल में बांटा गिया . कुछ ही सालों में सभी वर्कर्ज़ पचास पचास हज़ार पाऊंड के मालिक बन गए और अपनी ही कम्पनी के लिए जोर शोर से काम करने लगे. यह है फर्क मुफ्त का खाने और सख्त मिहनत करने में .

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