हाइकु/सेदोका

फागुन

1

खड़का कुण्डा
हुआ ठूंठ बासंती
फागुन थापी ।

2

बिंधे सौ तीर
बिन पी , मीन साध्वी
फागुन पीर ।

3

बिखरी रोली
तरु बाँछें खिलती
फगुआ मस्ती।

4

शिकवा / सताया हेम
विरही-भृंग पीड़ा
कली सुनती।

हिन्द में प्यार जाहिर करने के लिए ना दिन तारीख और ना समय तैय है ….. हम तो प्रतिदिन प्रतिपल इजहारे इश्क में होते हैं

वसंत हँसा
गुलों से लबरेज
सौगात ए इश्क।

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “फागुन

  • उपासना सियाग

    बहुत सुन्दर फागुनी हाइकु …

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ …..

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब ! प्यार करने का कोई दिन नहीं होता. यह एक निरंतर रहने वाली शाश्वत भावना है.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      जी
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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