कविता

वेदों का डंका बजवा दिया सबसे बड़े आलिम दयानंद ने

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इस चित्र को देखकर कुछ विचार आज कलम से निकले
जिसे ऋषि दयानंद बोध दिवस पर आपकी सेवा में प्रेषित कर रहा हूँ।
वेदों का डंका बजवा दिया सबसे बड़े आलिम दयानंद ने
आखिर लम्बे अरसे बाद ए ग़ालिब मुझे मेरी मंजिल नसीब हुई
दरवेश-ए-रहमत की जिसे पनाह मिली उनकी किस्मत खुल गई
नहीं हूँ मैं खेत की खेती और न ही बंदी और न ही मैं कोई हूर हूँ
जानो दुनिया वालो मैं भी एक रूह धारण किये खुदा का दस्तूर हूँ
संकल्प करो की छोड़ेगे भोग मार्ग और योग मार्ग के पथिक बनेगे
ख़्वाब छोड़ेगे जन्नत के और कायनाद को जन्नत में तब्दील करेंगे
बराबरी का नहीं बल्कि आदमी से भी बढ़कर दर्जा दिया जिन वेदों ने
कहे “विवेक” वेदों का डंका बजवा दिया सबसे बड़े आलिम दयानंद ने
डॉ विवेक आर्य