बाल कविता

परिक्षा का डर

परिक्षा का आया ऐसा मंजर
की हर बच्चे को लग रहा अब डर
बहुत कर ली मनमौजी भैया
अब याद आ रही सरस्वती मैया
कहे एकता बात ये सच्ची
यही बात नही लगती अच्छी
स्कूल बहुत ही अच्छा लगता
बस पेपर देना ही नही जचताँ
नानी याद आ जाती है
अक्ल कही खो जाती है
हर बच्चा कोसता होगा उन्हें
जिसने भी भुनाये परिक्षा के चने
पर क्या करे बेटा जरुरी हे
ये अनचाही मजबूरी है
तुम्हारी सक्षमता को दर्शाये ये
इस लिये घङी घङी आये ये
अपनी मेहनत को अब रंग मे लाओ
पढो खूब और नाम कमाओ

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com

2 thoughts on “परिक्षा का डर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा , यह वक्त ही ऐसा होता है जब सारे देवतों के नाम याद आ जाते हैं , याद आया मैट्रिक के फाइनल में मेरा दोस्त हिसाब का परचा दे कर आया और आते ही रोने लगा , हम ने उस को हौसला दिया . वोह सैकंड दिवियन में पास हो गिया , वोह बहुत गरीब खानदान का था लेकिन भाग्य का खेल देखो अब वोह मुम्बई में एक फैक्ट्री का मालिक है.

    • एकता सारदा

      जी हां बङा कङवा अनुभव होता है परिक्षा का परंतु जब इसका मनमाफिक परिणाम आता है तो दुनिया के सबसे भाग्यशाली इंसान समझते हे हम स्वयँ को ।

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