कविता

मिन्नतें

रात भर बुलाते रहे हम,
पर नींद हमारी आँखों से,
नाराज सी रही!
की कोशिश बहुत,
मिन्नतें भी की,
पर आने को पल भर भी,
न तैयार हुई!
रात भर बुना किये,
ख्बाबों मैं उन्हें,
उनके ख्यालों मैं ही बसर,
हमारी हर रात हुई!
खो गये हैं उनके इश्क मैं,
इस कदर,
न दिन पर हक रहा न
अपनी रात रही!
बहुत समझाया दिल को,
की मिन्नत भी बहुत,
पर कहाँ अपने बस मैं
अब कोई भी बात रही!
“आशा”डूबे हैं उनके इश्क मैं,
इस कदर ,
कि उबरने की हर कोशिश
नाकाम रही!
रात भर बुलाते रहे हम,
पर नींद हमारी आँखों से,
नाराज सी रही!
…राधा श्रोत्रिय”आशा”
६-०३-२०१४
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राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “मिन्नतें

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब.

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