बाल कविता

एक है पिंटू

एक है पिंटू, बड़ा ही नटखट
करता बहुत , हर वक़्त शरारत !

तुतलाती तुतलाती मिट्ठी बोली
पर करे , नाक में जब देखो दम
एक पिंटू , रहता सब पे भारी भारी
कर शैतानियाँ , भागे जब वो फ़टाफ़ट !

है  बातूनी , पर बोले अपनी ही बोली
चटर पटर केंची सी चले खूब चले जुबां
तोड़ -ताड़ , खेल कूद , उठा- पठक
यही है उम्र , जो आए ना कभी पलट !

दादी , भुआ , ताऊ – ताई का दुलारा
है गुड्डू बहना के हिवडे का हार
बाबू ,सिन्नी, सोंटु , मेघा , लालू, रिंकू , राधे
श्यामा , पूर्णिमा ,खिलाने दौड़े झटपट !

पूजा -पाठ , सजना- सवरना मम्मी का
सब ये , लालन – पालन में समाए
पापा भी देखो , बने है घोडा बाबा पिंटू के
दौड़े घोड़ा , जब डंडा मारे वो सरपट !

सुनील गज्जाणी

One thought on “एक है पिंटू

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी बाल कविता !

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