राजनीति

उद्घोष बनाम विकास

उद्घोष स्वार्थ के वजाय स्वाभिमान के साथ विश्वास से भरा हो तो निश्चित रूप से कार्ययोजना में क्रांति आती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिया गया नारा ‘‘स्वस्थ धरा तो खेत हरा’’ देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी ऐसी उम्मीद है। वैसे नारों के उद्घोष का योगदान आजादी के काल खण्ड से चलता चला आ रहा है। कई दिग्विजयी महापुरूषों ने इस तरह के नारे दिये जो आजादी के दौरान तोपों और तलवारों पर भारी पड़े। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का नारा भला कौन भुला सकता है, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। इस उद्घोष ने युवाओं में जोश भरा। उसी प्रकार लोकमान्य तिलक ने देशवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ ललकारते हुए एक नारा दिया, ‘‘पूर्ण स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है हम इसे लेकर रहेंगे’’।

ऐसे ही नारा अंग्रेजो के विरूद्ध महात्मा गांधी जी ने भी दिया ‘‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’’ ऐसे प्रेरित करने वाले नारों ने देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। आजादी के बाद भी इस तरह के उद्घोष का प्रयोग जननायकों द्वारा समय-समय पर होता रहा है। भूतपूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अपने शासन काल में एक नारा दिया था, ‘‘जय जवान- जय किसान’’। यह नारा शास्त्री जी ने उस दौरान दिया था जब देश की लगभग आधी आबादी भूखी रहती थी या फिर एक समय का खाना भी बड़ी मुश्किल से लोगों को मिलता था। उस समय देश की कृषि व्यवस्था कमजोर थी । अनाज के लिए विदेषियों का मुंह देखना पड़ता था। यह बात शास्त्री जी को बिल्कुल सहन नहीं हुई। देश की आर्थिक व्यवस्था सुधारने तथा लोगों को दोनों समय का खाना उपलब्ध कराने के लिए ऐसा उद्घोष का प्रयोग किया था । जो देष के हित में मिसाल साबित हुये ।

शास्त्री जी का यह उद्घोष देश के किसानों तथा जवानों के दिल को छू गया। लोगों को प्रेरित किया। किसानों ने देश के लिए जी तोड़ मेहनत कर देश को अनाज से भर दिया। कई वर्षों तक देश को विदेश से अनाज लेने की जरूरत नहीं पड़ी । लेकिन समय बदला और एक ऐसा दिन आया कि इस देश को एक बार फिर से अनाज के लिए विदेश (आस्ट्रेलिया) का मुंह देखना पड़ा। पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में ऐसी अजीबो गरीब घटना देखने को मिली थी। ऐसा तब हुआ कि देश में भण्डार की व्यवस्था ही ठीक नहीं थी । देश के किसानों ने अपना फर्ज निभाया और निभाते जा रहे हैं लेकिन गलत रीति-नीति के चलते ऐसे दिन देखने पडे़ कि देश का अनाज ही सड़ गया, जिसे फेंकना पड़ा।

आज भी देश में सही व्यवस्था न होने का दुष्परिणाम गरीबों को झेलना पड़ रहा हैं। आज भी देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें दोनों समय का भोजन नहीं मिल पाता। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी इसका विकल्प बनेंगे और लोगों की जरूरी आकांक्षाओं का सम्मान करेंगे, इसी उम्मीद से किसान मोदी के इस ‘‘स्वस्थ धरा तो खेत हरा’’ नारे का सम्मान करेगा। वैसे प्रधान मंत्री मोदी को इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि देश की आबादी तेजी से बढ़ रही है। लोग सुविधा भोगी होते जा रहें हैं। ऐसे में बडे़-बडे़ फ्लैट, चौड़ी सड़क, कंपनी, फैक्ट्री के निर्माण में जमीन का क्षरण दिन प्रतिदिन तेजी से हो रहा है। इन स्थितियों में ‘‘स्वस्थ धरा तो खेत हरा’’ कहां से होगा जब जमीन ही नहीं बचेगी।

One thought on “उद्घोष बनाम विकास

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. आपकी बातें सत्य हैं. किसान की खुशहाली पर ही देश का भविष्य टिका है.

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