कविता

कविता

चार छंदों में विचार कविता

नए युग का नवद्वार कविता

प्राण प्राण बहती है

हर मन ये कहती है

शब्द स्वर तो शब्दों की झंकार कविता

प्रियतम की बात हो

या विरह भरी रात हो

भूखी आँतों की आवाज

रोते हृदयों का साज

किसी पंछी की चहक

कभी बागों की महक

कभी सागर की लहर

या मन का हो जहर

सबके ही सहज वर्णन का विस्तार कविता

 

सत्य से परे नहीं

झूठ इसे हरे नहीं

जैसे लाजवंती के लाल फूल

या सड़कों की उडती धूल

नभ के उड़ते चाहे बादल

या अश्रु संग बहता सा काजल

कभी धूप जिसका रूप

जिसकी छाँव भी अनूप

ऐसे अव्यय प्रत्यय का उठती भार कविता
चार छंदों में विचार कविता

नए युग का नवद्वार कविता
___सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “कविता

Comments are closed.