हाइकु/सेदोका

होली हायकु

1
भीगी है चोली
सुलगा तन मन
विरही होली ।1979568_415970811871910_594186047_n
2
होली में लाल
रंग नहायी पिया
खुश्बू तू ख्याल ।
3
भीगी चुनर
ज्यों सुधियाँ बरसी
नयन कोर ।
4
बांका है छोरा
रंग डाला है मोरा
मुख था गोरा ।
5
हर्षित मन
होली के रंगों संग
भीगता तन
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6
नेह का रंग
लगाया उबटन
रहता संग
7
राधा तरसी
गोपियों संग खेले
कन्हाई होली
8
उड़े गुलाल
खुशियों की बहार
होली है यार
9
प्रकृति बोली
प्राकृतिक रंगों से
खेल तू होली
10
लाख छुपाये
प्रीत के पक्के रंग
ऐसे है भाये
11
कर न तंग
रंगी कान्हा के रंग
सब बेरंग
12
सुन सहेली
राधा-कृष्ण की होली
रंग-रंगीली ।
13
मस्ती के रंग
भांति भाति के सखा
होली के संग ।
14
भीगी है चोली
सुलगा तन मन
विरही होली ।
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15
होली में लाल
रंग नहायी पिया
खुश्बू तू ख्याल ।
16
भीगी चुनर
ज्यों सुधियाँ बरसी
नयन कोर ।
17
बांका है छोरा
रंग डाला है मोरा
मुख था गोरा ।
18
बरखा फाग
बाकी न रह जाए
द्वेष के दाग ।
19
घूमि घांघरा
न मार पिचकारी
कान्हा बावरा ।
20
बृज की होरी
छटा इन्द्रधनुषी
रंगी है 

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*