सामाजिक

अब्राहम (इब्राहिम), ब्राह्मण और संस्कृत , अरबी

संस्कृत दो प्रकार की हैं एक वैदिक और दूसरी लौकिक , वेदों की भाषा वैदिक संस्कृत मानी गई है । जब कौत्स ने वेदों को निरर्थक कहा तो यास्काचार्य ने निरुक्त लिख कर कहा की वेदों को जानने के लिए वैदिक संस्कृत आनी चाहिए सिर्फ लौकिक संस्कृत से वेदों को नहीं जाना जा सकता ।
इससे यह तय हो जाता है की वैदिक भाषा और थी और लैकिक( आम बोलचाल) संस्कृत अलग थी। लोग बोलचाल में संस्कृत का प्रयोग तो करते थे पर वैदिक संस्कृत का नहीं ।

जब मुस्लिम भारत आये तो वे अपने साथ अरबी भाषा लेके आये , क़ुरान की भाषा भी अरबी है , क़ुरान समझने के लिए अरबी आनी चाहिए। पर विदेशी मुसलमनो लाख चाह लिया की भारत के लोगो को अरबी आ जाये और वे अरबी समझने लगे पर वे विफल रहे । तब उन्होंने उर्दू भाषा का निर्माण किया। अरबी की अपेक्षा उर्दू अधिक लोगो द्वारा बोली गई और आम जन भाषा बनी । पर क़ुरान के लिए अरबी अनिवार्य बनी रही ।

क्या अरबी से उर्दू के इस उदहारण से यह नहीं लगता की जैसे अरबी विदेशी भाषा थी पर यंहा के लोगो द्वारा न अपनाने के कारण मजबूरन विदेशियो को उर्दू का निर्माण करना पड़ा उसी प्रकार वैदिक विदेशियो को जिनकी मात्र भाषा वैदिक संस्कृत थी उन्हें यंहा के लोगो से व्यव्हार करने के लिए लौकिक संस्कृत का निर्माण किया पर वेदों को जानने के लिए वैदिक संस्कृत की अनिवार्यता बनी रही ।

भारत की मुख्य भाषा संस्कृत कभी नहीं बन पाई जैसे मुगलो के शासन के बाद भी उर्दू नहीं बन पाई । यह मात्र राजकीय भाषा बनी रही ।
इसलिए बुद्ध एक राजा होने के बाद भी संस्कृत को नहीं अपना पाये और अपने ग्रन्थ पाली भाषा में लिखे ? महावीर जी की भी भाषा संस्कृत नहीं थी ।संस्कृत केवल ब्राह्मणों की भाषा बनी रही ।

इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण जानकारी देना चाहूँगा कि ब्राहण और अब्राहम दूसरे वंसजो में क्या समानता रही है ।
बहुत से लोगो का मनना है की वैदिक समुदाय शवो को अग्नि में समर्पित करता था , शवो की कब्र नहीं बनाता था अर्थात दफनता नहीं था । पर यदि ऋग्वेद में वैदिक ब्राह्मण अपने शवो को भूमि में दफनता था ।
देखे ऋग्वेद के दसवे मंडल के 18 सूक्त के मन्त्र नंबर 11, 12,13 में शवो को भूमी में दफ़नाने की बात हो रही है –
मन्त्र में कहा गया है – ” हे मृतक तुम्हारे लिए पृथ्वी माता के समान है। तुम महिमायुक्त पृथ्वी की गोद में प्राप्त हो जाओ। तुमने जो उत्तम उसके लिए पृथ्वी तुम्हरी रक्षा करे ।”

उपरोक्त सूक्त में सरे मन्त्र मृत्यु संबंधी हैं जो मृतक को पृथ्वी में दफनाने से सम्बंधित हैं ।
अब्राहम के वंसज मुस्लिम और ईसाई भी अपने शवो को दफनाते हैं अग्नि को समर्पित नहीं करते

इस प्रकार ऐसे कई और समानताये हैं जो ब्राह्मण, मुस्लिम , ईसाई को एक ही पूर्वपुरुष अब्राहम का वंसज सिद्ध करते हैं और भारत के बाहरी समुदाय होने के दावे की पुष्टि।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “अब्राहम (इब्राहिम), ब्राह्मण और संस्कृत , अरबी

  • विजय कुमार सिंघल

    आपके लेख की कई मान्यताओं से मैं सहमत नहीं हूँ !

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