पद्य साहित्यहाइकु/सेदोका

हाइकु

1
वीर हँसते
जिन्दगी ज्यूँ छेड़ती
भीरु रो लेते ।
2
वसंत शोर
रवि-स्वर्णाभा-होड़
पीले गुच्छों से।
3
असार स्वप्न
भस्म हुई उम्मीदें
धुँआ जिन्दगी ।
4
दुःख व हंसी
जिंदगी की सौगातें
रूप सिक्के के ।
5
पद के मद
आंगन में दीवारें
घर कलह।
6
घर कलह
बरसे रिश्तों पर
बेमौसम सा।

=

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “हाइकु

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विभा बहन , हाइकु अछे लगे , अक्षर कम , अर्थ ज़िआदा.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ भैया …. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      शुभ संध्या … बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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