कविता

भोजपुरी (हास्य कविता)

का कहीं हाल बाबू कहलो न जात बा,
देशवा के हाल बाबू दिनो- दिन बिगड़ल जात बा।
पहिले चकुदार दफादार रहलन पाता,
अब आइजी डिआइजी से केहू ना डेराता।
का कहीं हाल बाबू कहलो न जात बा।

एम०ए०,बी०ए० पास कइले टास्क ना बुझाता।
चीट पर फिट होके सिट पर लिखाता।
घुस चपरासी पइसा पुलिस के दियाता।
चीट पहुचाने वाला अलगे से खा ता।
का कहीं हाल बाबू कहलो न जात बा।

टीचर लोग ट्रेनींग करके मास्टर कहाता।
आ तेरह दिन में तीन दिन पढावे लोग जात बा।
घरही में बइठल-बइठल पइसा जोराता।।
का कहीं हाल बाबू कहलो न जात बा।
————निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

4 thoughts on “भोजपुरी (हास्य कविता)

  • विजय कुमार सिंघल

    कविता अच्छी है. भोजपुरी में होने के बावजूद साधारण हिंदी जानने वालों की भी समझ में आ जाती है.
    लेकिन इसमें कुछ सुधार की आवश्यकता है. कई जगह लय सही नहीं बनी है और छंद के नियमों का पालन होना चाहिए.

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      ji sriman ji

  • रमेश कुमार सिंह

    सुन्दर भोजपुरी अन्दाज़ निवेदिता जी।

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      dhanybad

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