हाइकु/सेदोका

सेदोका (577 577 वर्ण)

(1)

जेठ ज्यों चूल्हा

तवा बनी धरती

सूरज सम आँच

मानव सिंकें

उबलता पसीना

हाँफती त्रस्त साँसें

 

(2)

तुम चंद्रमा

मेरा हृदय नभ

बंधन ये अटूट

है कोहिनूर

जिंदगी की कमाई

मुस्कानों की वजह

 

(3)

होंठ लजाए

छिप गयी मुस्कान

दिल की ओट ले के

खिला चेहरा

गुलाबी हुआ समां

बहका रोम-रोम

 

 

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “सेदोका (577 577 वर्ण)

  • विजय कुमार सिंघल

    सेदोका एक विलक्षण शैली है. इसकी हर पंक्ति को समझना किसी पहेली को हल करने जैसा है. अच्छा है.

Comments are closed.