कविता

कविता : अब क्या लिखूं

चाहूँ तो लिखना
मगर अब क्या लिखूँ,

शब्द गूँगे हो गए हैं,
गीत सारे सो गए हैं,
तुम गए तो यूँ लगा ज्यूँ,
नभ से तारे खो गए हैं,
फिर से कोई तान छेड़ूँ,
एक नव कविता लिखूँ,

चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,

आहत सी हर संवेदना है,
अकथ्य मेरी वेदना है,
अभिमन्यु की भाँति अकेले,
चक्रव्यूह को भेदना है,
अपने हर एक रक्त कण से,
तेरी जय गाथा लिखूँ,

चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,

उत्तप्त आँधी चल रही है,
लौ हृदय में जल रही है,
कुछ अँधेरा कुछ उजाला,
चंद्रिका भी छल रही है,
स्वप्न का अनुगामी बनकर,
तुमको स्नेह सरिता लिखूँ,

चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,

ना हो बाधा शैल वन की,
ना दीवारें मध्य तन की,
मौन के पथ से करो तुम,
यात्रा यह मन से मन की,
निमंत्रण दे प्राण का मैं,
तुमको अभिलाषा लिखूँ,

चाहूँ तो लिखना,
मगर अब क्या लिखूँ,

भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com

2 thoughts on “कविता : अब क्या लिखूं

  • बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता !

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