कविता

कविता : राह कठिन थी…

जिसके जितने पास गए

उससे उतने दूर हुए

राह कठिन थी चलते चलते

एक दिन थक के चूर हुए

आस का दीपक जलते जलते

जला गया मेरा घर

सोच लिए हम शायद

वक्त के हाथो तुम मजबूर हुए

दूर हुए तुम ऐसे

जैसे प्रेम समर्पण भूल गए ।

जिसके जितने पास हुए

उससे उतना दूर हुए ।

— धर्म पाण्डेय

3 thoughts on “कविता : राह कठिन थी…

  • जवाहर लाल सिंह

    जिसके जितने पास हुए

    उससे उतना दूर हुए । वाह बहुत ही सुन्दर!

  • बहुत अच्छी कविता है.

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत ख़ूब ! !

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