हास्य व्यंग्य

सेमीफाइनल के अर्थ

आज भारत का सेमीफाइनल हारना कुछ ऐसी ही अनुभूति पैदा कर रहा है

जैसी, इम्तहान में कोई पर्चा खराब हो जाने पर होती है,

जैसी, किसी नौकरी के लिये दिये हुए साक्षात्कार में न चुने जाने पर होती है,

जैसी, बेटी की शादी के लिये आये हुए रिश्ते के कट जाने पर होती है,

जैसी, मार्च के टार्गेट पूरा न कर पाने पर होती है, अर्थात,

जैसी, हाथ में आयी हुई चिड़िया के उड़ जाने पर होती है।

और ये एहसास, यकीन करिये, रात को

ठीक से सोने नहीं देगा,

खाना खाने नहीं देगा

घर से बाहर जाने नहीं देगा

कोई खुशी मनाने नहीं देगा

हाय, ये कैसा एहसास है जो

चैन से जीने नहीं देगा।

पर कहीं इसका भी यकीन है कि

हकीम-ए-वक्त, जो हर घाव भर देता है, इस चोट पर भी नज़र करेगा

अपने नायाब मरहम से इस घाव को भी भरेगा।

एवम्अस्तु ।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “सेमीफाइनल के अर्थ

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा व्यंग्य ! खेल को अधिक महत्व देने पर यही होता है।

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