कविता

तेरे एहसास ……..

दिल से उठते हैं ये बुलबुले
एहसासों का सैलाब लिये
उड़ना चाहते हैं ये
खुले आसमान पर
मगर दिल के बंद दरवाज़ों से टकरा
चटक जाते हैं
और हम लग जाते हैं
उन्हें समेटने
कहीं मैले न हों
या कोई झांक न ले इनमें
जानते हो ना
दीवारों के भी कान होते हैं
मगर कुछ बच पाते हैं
और कुछ बिख़र जाते हैं
और हम खो जाते हैं
झोली में बचे एहसासों में
और बह जाते हैं
भावनाओं के दरिया में
दो किनारों की धारा जैसे
एक किनारा कुछ मिठास लिये
दूसरा दर्द का एहसास लिये
अनजाने लग जाते हैं किसी एक किनारे
फिर शुरू होता है
एक बवंडर तेज गर्म हवाओं का
या पुरवाई सी ठंडी घटायों का
और हम जी लेते हैं वोह लम्हा
क्यों कि जी चुके हैं हम हरदिन
ये अनगिनित बार
तेरे एहसास

मोहन सेठी ‘इंतज़ार’
आस्ट्रेलिया

One thought on “तेरे एहसास ……..

  • बहुत खूब .

Comments are closed.