कविता

कविता : आम आदमी की आवाज

सत्य की राह पर चलती है

किसी से वह न डरती है

अनजाने चेहरों के बीच

जोश में जब वह उठती है

कुछ अराजक तत्वों के द्वारा

पैरों तले रौंदी जाती है

वह आम आदमी की आवाज कहलाती है

खामोश रहकर भी

अपना दमखम दिखाती है

जो मर कर भी जिंदा हो जाती है

वह आम आदमी की आवाज कहलाती है

विकाश सक्सेना

One thought on “कविता : आम आदमी की आवाज

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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