लघुकथा

उम्मीद प्यार की

आशा अपने पति से बेहद प्यार करती थी। पति का सेवा ही उसका परम धर्म था। दिलीप भी उससे बहुत प्यार करता था।

बहुत समय बीत गया। दिलीप बहुत अमीर बन गया। इतना कि उसके आगे आशा का प्यार उसे बहुत छोटा लगने लगा। वह अक्सर उसके साथ बेरुखी से पेश आता था। उसके ऐसा व्यवहार से आशा परेशान थी। उसके दिमाग में क़ई तरह की बातें आने लगी। कभी सोचती कि शायद दिलीप को कोई और पसंद आ गयी है या उसके प्यार में ही कोई त्रुटि है जिसके कारण वे नाराज रहते हैं। जब दिलीप ऑफिस जाता तो आशा भूखी दरवाजे पर बैठकर उसका इंतजार करती रहती और उसके आते ही उसके सेवा में जुट जाती। उसके इस प्यार को लोग उसका पागलपन समझने लगे और खासकर दिलीप। वह उसे बोझ समझने लगा।

एक दिन तो दिलीप आशा को छोड़कर ही चला गया। लेकिन आशा उसके इस फैसले के लिए भी खुद को दोषी मानती है। वह आज भी दरवाजे पर बैठकर शबरी की तरह उसका राह देख रही है। उसे उम्मीद है कि एकदिन दिलीप उसके पास आयेगा। रोज उसके लिए अच्छे-अच्छे पकवान बनाती है, फूल-माला सजाती है, बिस्तर लगाती है और शाम को जब वह नहीं आता तो निराश मन से सोने चली जाती है फिर सुबह इसी वही उम्मीद ।

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

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