कविता

एक दीपक

कभी नहीं डरता है चाहे जितना हो तिमिर
एक दीप अंधेरों का देता है सीना चीर

प्रेम का है तेल इसमें स्नेह की है बाती
खुशियों का प्रकाश ये देता है दिन-राती
स्वयं सितम सहकर हरता है पराई पीर
एक दीप अंधेरों का देता है सीना चीर

मंजील की राहों में सबको दिखाता दिव्य प्रकाश
सब पर जीत पाने का इसमें है आत्म-विश्वास
हरदम जलता रहता चाहे आँधी आये या नीर
एक दीप अंधेरों का देता है सीना चीर

जो सज्जन दूसरों के लिए दीपक जैसा जलता है
अज्ञानता का अंधकार मिटाकर जग को उज्जवल करता है
ऐसे लोग ही कहलाते हैं दुनिया में कर्मवीर
एक दीप अंधेरों का देता है सीना चीर

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

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