उपन्यास अंश

यशोदानंदन-३९

अपनी अद्भुत लीला समाप्त कर श्रीकृष्ण ने व्रज लौटने का निश्चय किया। व्रज में श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति से प्रोत्साहित अरिष्टासुर ने व्रज को तहस-नहस करने के उद्देश्य से व्रज में प्रवेश किया। उसने वृषभ का रूप धारण कर रखा था। उसके कंधे के पुट्ठे तथा डील-डौल असामान्य रूप से विशाल थे। उसके खुरों के पटकने से धरती में कंपन हो रहा था। पूंछ खड़ी किए हुए अपने भयंकर सींगों से चहारदीवारी, खेतों की मेड़ आदि तोड़ता हुआ वह आगे बढ़ता ही जा रहा था। उस तीखे सींग वाले वृषभ को देख समस्त वृजवासी कृष्ण को पुकारते हुए वन की ओर भागने लगे। पूरे वृन्दावन को अत्यन्त भयाकुल देख श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर को चुनौती दी। क्रोध से तिलमिलाये अरिष्टासुर खुरों से धरती को खोदता हुआ श्रीकृष्ण पर झपटा। श्रीहरि ने उसके दोनों सींग पकड़ ऐसा झटका दिया कि वह अठारह पग पीछे जाकर चारों खाने चित्त हो गया। श्रीकृष्ण ने दौड़कर उसे धर दबोचा, उठने का कोई अवसर ही नहीं दिया। उसके दोनों सींग उखाड़ लिए और उसे ही हथियार बना उसका संहार किया। चारों दिशाओं से समवेत स्वर उभर रहा था – जय श्रीकृष्ण।

श्रीकृष्ण व्रज की मौज-मस्ती में मगन थे। उधर देवताओं की चिन्ता बढ़ती जा रही थी – कही श्रीकृष्ण व्रज में इतना न रम जायें कि कंस-वध का कार्य ही भूल जांय। देवलोक में इन्द्र ने एक बैठक बुलाई और अपनी चिन्ता स्पष्ट रूप से प्रकट की। कंस-वध में हो रहे अत्यधिक विलंब पर सबने अपनी-अपनी चिन्ता व्यक्त की। सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि देवर्षि नारद को पृथ्वी पर भेजा जाय और इस दिशा में आवश्यक कार्यवाही करने हेतु उनसे अनुरोध किया जाय। इस कार्य को सिद्ध करने और श्रीकृष्ण से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित करने में नारद जी ही समर्थ थे। देवर्षि ने सहर्ष अपनी सहमति प्रदान की। वे सर्वप्रथम मथुरा पहुंचे एवं कंस से मिले। उन्होंने रहस्योद्घाटन करते हुए कंस से कहा –

“महाराज कंस! तुम्हें यह विश्वास है कि देवकी के गर्भ से आठवीं सन्तान के रूप में कन्या का जन्म हुआ था, जिसे तुमने मारने का प्रयास किया था, वह मिथ्या है। वह कन्या तो नन्द बाबा और यशोदा की पुत्री थी जो तुम्हारे हाथ से छिटककर आकाश में चली गई। वसुदेव और देवकी की आठवीं सन्तान तो श्रीकृष्ण हैं जो व्रज में पल-बढ़ रहे हैं। श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता के रूप में प्रतिष्ठित बलराम रोहिणी के पुत्र हैं। वसुदेव ने तुम्हारे भय के कारण जन्म लेने ले तत्काल बाद श्रीकृष्ण को व्रज पहुंचा दिया था और बदले में उस कन्या को वहां से उठा लाए थे। श्रीकृष्ण ने ही तुम्हारे द्वारा भेजे गए तुम्हारे सारे अनुचरों का वध किया है। जबतक वे जीवित हैं, तुम असुरक्षित हो। वह दिन दूर नहीं जब वे मथुरा आकर तुम्हारा वध करेंगे। इसलिए हे कंस! समय गंवाए बिना श्रीकृष्ण से मुक्ति का कोई उपाय करो।”

कंस की आँखें आश्चर्य से फटी रह गईं। भय के मारे वह पीला पड़ गया। क्रोध से उसकी एक-एक इन्द्रिय फड़फड़ा उठी। वह नंगी तलवार लेकर वसुदेव जी के वध के लिए उद्यत हुआ। नारद जी ने उसे शान्त करते हुए कहा –

“जो होना था, वह तो हो चुका है। वसुदेव के वध से किसी समस्या का समाधान संभव नहीं है। एक निहत्थे संबन्धी का वध करने का पाप तुम पर चढ़ेगा अलग से। अतः समस्या के मूल श्रीकृष्ण से मुक्ति की कोई युक्ति निकालो। यही तुम्हारे लिए श्रेयस्कर होगा।”

कंस ने वसुदेव जी के वध का विचार त्याग दिया, परन्तु उन्हें पुनः देवकी के साथ हथकड़ी-बेड़ी से जकड़कर कारागार में डाल दिया। लेकिन उसकी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी। उद्विग्नता में कई दिन और कई रातें बीत गईं। घबराहट में उसने अपने विशेष अनुचर केशी को बुलाया और व्रज में जाकर श्रीकृष्ण और बलराम के वध का आदेश दिया। “जैसी आज्ञा” कहकर केशी ने व्रज के लिए प्रस्थान किया। दैत्य केशी ने एक भयंकर अश्व का रूप धारण किया। उसने तीव्र गति से दौड़ते हुए व्रज में प्रवेश किया। वह अपनी टापों से धरती खोदते हुए आगे बढ़ा जा रहा था। उसके गर्दन के छितराए हुए बालों के झटके से आकाश के बादल तितर-बितर हो रहे थे। उसकी भयानक हिनहिनाहट से समस्त व्रज भय से कांप उठा। उसकी बड़ी-बड़ी रक्तिम आँखों से क्रोध की चिनगारी निकल रही थी। उसका विशाल मुख किसी कंदरा की भांति प्रतीत हो रहा था। श्रीकृष्ण और व्रजवासियों में भय का संचार करने के लिए उसने चतुर्दिक व्रज की परिक्रमा की। सब त्राहि-त्राहि कर उठे।

श्रीकृष्ण को यह समझते तनिक भी देर नहीं लगी कि वह दैत्य उन्हें ही ढूंढ़ रहा था। बिना विलंब किए वे उसके सामने उपस्थित हो गए और गगनभेदी स्वर में उसे चुनौती दी। क्रोध में भर केशी साक्षात यमराज के समान दीख रहा था। वह श्रीकृष्ण की ओर मुंह फाड़कर ऐसे दौड़ा मानो सारा आकाश पी जायेगा। उसका वेग इतना प्रचंड था कि उसे पकड़ पाना भी असंभव लग रहा था। उसने श्रीकृष्ण के पास जाकर दुलत्ती झाड़ी। सारा आकाश धूल से भर गया। कोई किसी को देख नहीं पा रहा था। स्वयं केशी कुछ भी देखने में असमर्थ था। ऐसा लगा जैसे किसी भयंकर बवंडर ने व्रज को घेर लिया। श्रीकृष्ण ने इसे उचित अवसर माना। उस भयंकर अश्व के दोनों पैरों को अपने शक्तिशाली हाथों से पकड़ हवा में जोर-जोर से घुमाया। दैत्य केशी कुछ समझ पाता, इसके पूर्व ही उसे चार सौ हाथ की दूरी पर फेंक दिया और स्वयं अकड़कर खड़े हो गए। केशी अचेत हो गया। श्रीकृष्ण चुपचाप खड़े थे।

शीघ्र ही केशी की चेतना लौट आई। क्रोध से तिलमिलाते हुए मुंह फाड़कर वह प्रचंड वेग से श्रीकृष्ण पर झपटा। अपने स्थान पर अविचल रहते हुए कन्हैया ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया। जैसे ही केशी उनके पास आया, उसके गुफा के समान मुंह में गोविन्द ने अपना हाथ डाल दिया। उनका भुजदंड उसके मुंह में जाकर बढ़ने लगा। केशी को ऐसा लगा जैसे तप्त लोहे की सलाखें उसके मुंह और पेट में प्रविष्ट कर गई हों। उसकी सांस के आने-जाने का मार्ग शनै-शनै अवरुद्ध होने लगा। दम घुटने के कारण वह पैर पीटने लगा और पसीने से लथपथ हो गया। आँखों की पुतलियां उलट गईं और मल-मूत्र त्यागते हुए वह धड़ाम से पृथ्वी पर गिर गया। उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के श्रीकृष्ण ने उस प्रबल शत्रु का खेल-खेल में विनाश कर दिया। व्रजवासियों ने उन्हें कंधे पर उठा लिया। चारों ओर से एक ही ध्वनि आ रही थी –  जय कन्हैया लाल की, मदना गोपाल की। देवर्षि नारद घटना के प्रत्यक्षदर्शी थे। उन्होंने एकान्त में प्रभु से मिलने की इच्छा प्रकट की। दोनों एक-दूसरे को चिरकाल से जानते थे। श्रीकृष्ण और नारद जी ने कदंब की छाया में बैठकर मंत्रणा की। देवर्षि ने आराधना करते हुए श्रीकृष्ण को संबोधित किया –

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “यशोदानंदन-३९

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक !

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