मुक्तक/दोहा

मुक्तक

उठती गिरती सागर की लहरों लेजाओ मेरा पैगाम

मन के मनके को छिपा सीप में ले जाओ प्रीतम के धाम ‘

प्रीत जता कर प्रीत निभाना जिनको कभी नहीं आया

मर्यादा पुरुषोत्तम तुमको सिया पुकारे आठों याम

11122469_883847435012681_2026358709_n

 

 

 

 

 

 

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

4 thoughts on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • लता यादव

      बहुत ही आभार आपका

  • मन के मनके को छिपा सीप में ले जाओ प्रीतम के धाम ‘

    बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी …बेह्तरीन अभिव्यक्ति

    • लता यादव

      आदरणीय प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद

Comments are closed.