कविता

इंतज़ार 

दिन गुजर गया इंतज़ार में उनके,
कहीं रात भी न ढल जाये !
बहुत मल -मल के धोया चेहरे को,
पर उनकी यादों के निशाँन न जायें!
फ़िर तेरी गज़लों को पढने बेठे,
लफ़्ज़ों से तेरे मेरा जिस्म पिघल जाये!
रिश्तों के धागे नाज़ुक हैं बडे,
काँच के जैसे इन्हें संभाला जाये!
मेरे अरमानों को इस तरह तोडा उसने,
शाख से कोई फ़ूल को तोड लिया जाये!
बदलते मौसम की तरह पल भर मैं,
रंग चेहरों के यहाँ बदल जायें !
इंतज़ार में बीत गयी “आशा” रात आधी,
चलो अपने बदन को ही ओढ के सोया जाये!

राधा श्रोत्रिय”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"