मुक्तक/दोहा

कातर नैन…

रंग बिरंगेंजीवन की
स्वर्णिम आभा तेरी हो।
तेरे चेहरे का नूर सदा
आॅंखों को सुख देता हो।

कल्पित स्वर्ण जीवन में
तेरे मुकुट के जैसा हो।
भीख मांगते हाथ मेरे
दानी माता जैसा हो।

लूट पड़े या टूट पड़े सब
कातर नैन हमारे हो।
बाट जोहता मात तेरी मै
जित खड़ा, उत दर्शन तेरा हो।

मनोज ‘मौन’

One thought on “कातर नैन…

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

Comments are closed.