कविता

अहिवाती धरती

मै अहिवाती धरती हूँ, मुझे बेवा तो न बनाइये

मेरा सुहाग है हरियाली, सूनी मांग तो न बनाइये

मै ही माँ की ममता हूँ, हर जीव-जंतु की जननी हूँ

श्रृंगार न मेरा रंजित हो, मुझे बंजर तो न बनाइये 

मै धरती हूँ फलित कोख,  मुझे बंध्या तो न बनाइये

इस सत्य-सनातन नारी को, कलुषित तो न बनाइये

मै ही पावन गंगा हूँ, है खड़ा हिमालय गोद मेरी

सीने पर मेरे कर कुठार, वृद्धाश्रम तो न बनाइये 

मै रमणिया बगिया हूँ, मुझे निर्जन तो न बनाइये

काला कचरा मेरे आँचल, फिर कफ़न तो न बनाइये

विष फुहार मेरे विस्तर, प्लास्टिक की चादर है मैली 

अंकुरित न होगा बीज-पिया, संग ऊसर तो न बनाइये 

मेरा वजूद है कण-कण से, मुझे पाथर तो न बनाइये

मासूम मुलायम सी चमड़ी, इसे लोहा तो न बनाईये

मै दिन-दिवाकर शशि-निशा, हर धातु गर्भ में हैं मेरे

ना करो तात टुकड़ा मेरा, मुझे क्यारी तो न बनाइये

जल-जीवन उपवन बहार, गिर पतझड़ तो न बनाइये

ये वन्य जीव प्रहरी मेरे, मृगछाला तो न बनाइये

मै धरा धुरी हूँ जीवन की, है जीवों से दुनिया सारी 

जीवन ही जीवन का बैरी, मुझे दुश्मन तो न बनाइये

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

5 thoughts on “अहिवाती धरती

  • बहुत सुंदर कविता श्रीमान जी।इस कविता से जन-जन में एक अच्छा संदेश जा रहा है।

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद श्री रमेश कुमार सिंह जी……

  • महातम मिश्र

    सुप्रभात श्री विजय कुमार सिंघल जी, सादर नमस्कार , आप ने अपनी पत्रिका में मुझे स्थान दिया इसके लिए सादर आभार……
    मुझे उम्मीद ही नहीं अपितु विश्वास है कि मेरी रचनाओं को आप और पाठक गण पसंद करेंगे, सादर धन्यवाद…….

    • विजय कुमार सिंघल

      नमस्ते, बंधु. आपकी कविता बहुत अच्छी है. आगे आप और भी श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत करेंगे ऐसी आशा है. हम उनमें से सबसे अच्छी को प्रतिमाह छांटकर पत्रिका में भी छापेंगे.

      • mahatammishra

        सम्मानित श्री विजय सिंघल जी आप ने रचना को पसंद किया यह मेरे मनोबल को बढ़ाएगा और नयी कृति और भी सुन्दर बन पड़ेगी, धन्यवाद मान्यवर……

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