आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 43)

पिछली कड़ियों में अपनी जापान यात्रा का पूर्ण विवरण दे चूका हूँ। जापान से लौटने वाले दिन सड़क पर जाम के कारण मेरी उड़ान छूट गयी थी। अगली उड़ान 2 दिन बाद थी। वे 48 घंटे मैंने जापान के नारीता एयरपोर्ट पर बैठे हुए किस प्रकार बिताये, यह पूरा विवरण भी पिछली कड़ी में दिया है। दो दिन बाद की अगली फ्लाइट मुझे आसानी से मिल गयी थी और मैं आराम से दिल्ली के पालम हवाई अड़डे पर उतर गया था। उस समय रात के 12 बजे थे। मेरे पास टैक्स देने लायक कोई वस्तु नहीं थी, इसलिए मैं आराम से ग्रीन चैनल से निकल आया।

यहाँ मैंने एक बड़ी भूल कर दी। मुझे यह कल्पना नहीं थी कि मेरे घरवाले और ससुरालवाले मेरे लिए कितने परेशान हो रहे होंगे। मुझे सबसे पहले दिल्ली पहुँचते ही या सुबह ही आगरा फोन करा देना चाहिए था कि मैं यहाँ सुरक्षित पहुँच गया हूँ और जल्दी ही आगरा पहुँच जाऊँगा। परन्तु यह फोन कराने की बात मेरे दिमाग में नहीं आयी। मुझे चिन्ता तो अपने डालरों को रुपयों में बदलवाने की थी। अतः मैं सुबह होते ही सिटी बस से सबसे पहले अशोका होटल गया और वहाँ डालर देकर रुपये प्राप्त किये। वहाँ से मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन गया। मेरा विचार था कि कोई न कोई गाड़ी आगरा की तरफ जा ही रही होगी, मैं उसमें चढ़कर 2-3 घंटे में आगरा पहुँच जाऊँगा।

लेकिन यहाँ मैं बहुत बड़ी भूल पर था, क्योंकि उन दिनों अयोध्या में कारसेवा होने वाली थी और उ.प्र. की मुलायम सिंह सरकार ने चारों ओर से प्रदेश की नाकेबंदी कर दी थी, ताकि श्रीराम जन्मभूमि परिसर अयोध्या में ‘कोई परिन्दा भी पर न मार सके।’ वैसे मुझे जापान में ही अखबारों से पता चल गया था कि श्री लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार ने रोककर उनको गिरफ्तार कर लिया है और उसके जवाब में भाजपा ने तत्कालीन वी.पी. सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। लेकिन यहीं आकर पता चला कि स्थिति कितनी भयावह थी। सारी रेलगाड़ियाँ रद्द कर दी गयी थीं और अन्तर्राज्यीय बस सेवाएँ भी रोक दी गयी थीं, ताकि कोई उत्तर प्रदेश में न घुस सके।

मजबूर होकर मैं एक आॅटो से मथुरा रोड पर स्थित हरिनगर आश्रम बस स्टाॅप पर पहुँचा। मेरा विचार था कि वहाँ से मथुरा-आगरा की तरफ जाने वाली कोई न कोई बस मिल ही जाएगी। उस दिन तब तक मैंने कुछ भी खाया नहीं था, इसलिए उसी स्टाॅप से कुछ केले लेकर खाये।
वहाँ खड़े हुए एक सज्जन ने बताया कि मथुरा-आगरा की तरफ जाने वाली बसें केवल यू.पी. बाॅर्डर तक जा रही हैं। वहाँ से पैदल बाॅर्डर पार करके मैं मथुरा की तरफ जा सकता हूँ। मैंने सोचा कि यही सही, अतः जो पहली बस वहाँ आयी, मैं उसी में चढ़ गया। भीड़ के कारण मुझे खड़े-खड़े जाना पड़ा। मेरे पास 2 अटैची और एक बैग था, उनको किसी तरह बस में रख लिया। 2 घंटे की यात्रा के बाद मैं यू.पी. बाॅर्डर पर उतरा। वहाँ से सारा सामान हाथों में लटकाकर मैंने बाॅर्डर पार की। लगभग 400 मीटर मुझे सारे सामान के साथ पैदल चलना पड़ा। सौभाग्य से तभी एक ट्रेक्टर-ट्राॅली कोसी की तरफ जाती हुई मिल गयी। शायद वह सवारियाँ ही ढो रही थी। मैं उसमें चढ़ गया और 15-20 मिनट में उसने हमें कोसी पहुँचा दिया। कोसी में मुझे 10-15 मिनट में ही मथुरा जाने वाली बस मिल गयी। उसमें बैठकर मैं डेढ़ घंटे बाद मथुरा के नेपाल होटल वाले नये बस अड्डे पर पहुँच गया। वहाँ आगरा जाने वाली एक बस तैयार खड़ी मिली। मैं उसमें भी चढ़ गया और उसके लगभग डेढ़ घंटे बाद अपने घर के पास देहली गेट आगरा के स्टाॅप पर उतर गया। उस समय शाम के 5 बजे थे। वहाँ से मैं रिक्शे में घर पहुँचा।

उस समय हमारे घर पर हालत बहुत खराब थी। सभी लोग मेरे न लौटने और कोई समाचार भी न मिलने के कारण परेशान थे। श्रीमती जी एक बार रो-धोकर अपने मायके राजामंडी जा चुकी थीं और वहाँ पर दिल्ली जाकर मुझे खोजने की योजनाएँ बनायी जा रही थीं। जब मैं अपने घर पहुँचा तो मम्मी ने रोते हुए मुझे गले लगाया। फिर उन्होंने तत्काल ही राजामंडी फोन किया कि मैं पहुँच गया हूँ, तब सबकी जान में जान आयी। सायंकाल मुझे ससुराल जाने का आदेश मिला और मैं वहाँ गया। उस समय तक मैं शारीरिक और मानसिक रूप से इतना थक गया था कि खाना खाकर रातभर बेसुध पड़ा सोता रहा। इसके बाद मुझे 15 दिन और आगरा में ही रुकना पड़ा, क्योंकि अयोध्या आन्दोलन के कारण रेलों का आवागमन अनिश्चित था। स्थिति सामान्य होने पर ही मैं वाराणसी जा सका।

मेरे जापान से लौटने के कुछ दिन बाद ही वी.पी. सिंह की सरकार गिर गयी थी और उसके कुछ दिन बाद कांग्रेस के बाहरी समर्थन से चन्द्रशेखर की सरकार बनी। यह सरकार भी मात्र 6 माह चली और चुनाव घोषित हो गये।

वह चुनाव तीन या चार चरणों में होना था और एक-दो चरण हो चुके थे, जिनमें भारतीय जनता पार्टी की हालत बहुत अच्छी बतायी गयी थी। तभी दुर्भाग्य से चुनाव प्रचार करते समय राजीव गाँधी की हत्या तमिल आतंकवादियों ने कर दी। इस हत्या से चुनाव का माहौल ही बदल गया। अगले चरणों में जो चुनाव हुए, उनमें हवा कांग्रेस के पक्ष में बहने लगी। जब परिणाम निकले तो कांग्रेस बहुमत से दूर रहकर भी सबसे बड़ी पार्टी बन गयी। झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि के सांसदों को खरीदकर कांग्रेस के नरसिंह राव ने बहुमत पूरा कर लिया और अपनी सरकार बना ली।

उन्हीं दिनों मुझे अखबारों में सम्पादक के नाम पत्र लिखने का शौक लग गया था। इसकी शुरूआत कुछ इस प्रकार हुई थी कि जब मैं लखनऊ में था, तो ‘जनसत्ता’ अखबार मँगाकर पढ़ा करता था। तब उसे बहुत निष्पक्ष अखबार माना जाता था। तभी मैंने भोपाल गैस त्रासदी पर एक व्यंग्यात्मक कविता उसके सम्पादक को लिख भेजी। आश्चर्य कि वह छप भी गयी। मेरे कई परिचितों ने भी उस कविता को पढ़ा था और उसकी प्रशंसा की थी। वह कविता मैं नीचे दे रहा हूँ-

भारत चलो
दुनिया के शोषको और हत्यारो एक हो
और भारत की ओर चलो
यहाँ आजकल आपकी मस्ती ही मस्ती है
क्योंकि इंसानों की जान यहाँ सबसे सस्ती है।
हिटलर!
अब तू भी अपनी कब्र से उठ जा
और भारत आकर आबादी घटाने में जुट जा।
यहीं पर अपने गैस चैम्बर बना
यहूदी तो तुमने बहुत मारे होंगे
अब भारतीयों की हत्या का मजा लूट !
एक जान की कीमत है केवल तीन हजार
और गाँधी जयन्ती पर विशेष छूट !!
(जनसत्ता, दिल्ली, दि. 4.4.1989)

मुझे इसके छपने की आशा नहीं थी, लेकिन जब यह छप गयी तो मुझे बहुत सन्तोष हुआ। तब मैंने नियमित रूप से समाचार पत्रों में लिखने का निश्चय कर लिया। मुख्य रूप से मैं जनसत्ता (दिल्ली) और लखनऊ-वाराणसी के स्थानीय संस्करणों वाले अखबारों जैसे अमर उजाला, दैनिक जागरण, आज, गांडीव आदि में लिखा करता था। मेरे अधिकतर पत्र छप भी जाते थे, हालांकि सम्पादक उनमें अपने-अपने हिसाब से काट-छाँट करते रहते थे।

(जारी…)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

4 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 43)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , यह एपिसोड भी बहुत अच्छा लगा और इस से एक बात स्पष्ट हो गई कि आप का वापसी सफ़र बहुत मुश्किल भरा था , उस वक्त की राजनीतक हालात भी मालूम हुए , जिस में राजीव गांधी की हत्या और कांग्रस की जीत. आप की कविता बहुत पसंद आई जिस में भूपाल गैस हादसे की दर्दनाक स्थिति पर एक विअंघ था .

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, भाई साहब !

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते एवं धन्यवाद श्री विजय जी। आप सकुशल घर पहुँच गए। दिल्ली से आगरा की यात्रा में आई कठिनाइयों के बारे में भी जाना और उन्हें आपने पार किया। देश की उन दिनों की राजनैतिक स्थिति पर भी आपने प्रकाश डाला है जिससे उन दिनों के यादें ताजा हो गयीं। आपकी कविता भी बहुत अच्छी लगी। आज की किश्त रोचक है। हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, मान्यवर !

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