गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हमसे पूछा न गया उनसे बताया न गया
प्यार मन में ही रहा, होठों पे लाया न गया

लट एक झटके से पलकों पे गिराली लेकिन
आँख का मोती मगर हमसे छिपाया न गया

चाँदनी रात में हमने जो लिखे ख़त उनको
उन लिफाफों कोकभी उनको दिखाया न गया

आशियाँ दिल में सजाया था जिनकी यादों का
टूट कर बिखरा तो फिर हमसे बनाया न गया

बितादी हमने तमाम उम्र जिसकी यादों में
आज तक राज मगर हमसे बताया न गया

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह अतीव सुंदर गीतिका

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !

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