गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

pic 1उसका चेहरा है क्यूँ उतरा जनाब मत पूछो।
लगा है हुश्न पर पहरा जनाब मत पूछो ।।

मुद्दई और गवाहों की जरुरत क्या थी ।
फिर वो पेशी से है मुकरा जनाब मत पूछो।।

हम इंकलाब ए मुहब्बत की खबर लाये थे।
हो गया मुल्क का सहरा जनाब मत पूछो ।।

इस रियासत की ईट में है फना की फितरत।
कैसे झंडा यहां फहरा जनाब मत पूछो ।।

हूर ए चिलमन के उठाने से कहर बरपा है।
जमी से चाँद है गुजरा जनाब मत पूछो ।।

आलिमो ने यहाँ दरियाफ्त गुफ्त गूँ कर ली।
खतो के दर्द का मिसरा जनाब मत पूछो।।

मुद्दतों बाद आशियाँ भी मिल गया दिल में ।
रास्ता क्यूँ हुआ सकरा जनाब मत पूछो।।

सियाह शब् में इन्तजार ए जख्म का मंजर।
फिर मुकम्मल यहाँ ठहरा जनाब मत पूछो ।।

सिलवटें फिर शिनाख्त कर गयीं बेचैनी की।
क्यों गिरा जुल्फ से गजरा जनाब मत पूछो।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

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