कविता : तस्वीर
खरोच देता हूँ
आईने को खुद के हाथों से ।
मेरी तस्वीर के संग
उस बेवफा की तस्वीर क्यों बनती है ????
मेरी आँखों ने जैसे दुनिया में
कोई सूरत न देखी हो ।
मेरे अश्क़ में भी बस गया वो इस कदर ।
तोड़ के देख लिया आईने न जाने कितने
टूटे दिल में उस बेवफा का अश्क़ नहीं टूटा ।
— धर्म पाण्डेय
बहुत खूब !!