कविता संग्रह ‘हमिंग बर्ड’ : एक सराहनीय उपलब्धि
हिन्द युग्म प्रकाशन की छत्रछाया में प्रकाशित मुकेश कुमार सिन्हा जी की कविता संग्रह ‘हमिंग बर्ड’ एक बहुत ही सराहनीय उपलब्धि है। यूँ तो लोग कविता से दूर ही भागते हैं ये समझ कर की ‘कविता है, intellectuals के लिए होती है, हमें क्या समझ आएगी’, लेकिन मुकेश जी की कोशिश और उनकी रचनाएँ इतनी सरल और सुगम हैं की उनमे कही गयी बात बड़ी ही आसानी के साथ पाठक के मन को छूती हैं।
उनके द्वारा कही गयी बातें हमारे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की दास्तान है।मध्यम वर्गीय परिवार के जीने की कोशिश, अपने सपनों को बचाकर उनमे उड़ान देने का जज़्बा, कर्मठ होकर अपने भाग्य को चुनौती देने की चेष्टा, कभी कभी थक हार कर घर लौट आना और फिर से एक नए कल के सपने सँजोना… ये सब कुछ बखूबी लिखा है।अपने आसपास के जीवन का भी बहुत ही व्यापक चित्रण किया है। क्यूँकर कविता का जन्म होता है कवि के मन में,किन परिस्थितियों में उसकी भावनाएं आवेग में आकर शब्दों का रूप धारण करती हैं, ये उनकी कविताओं को पढ़ कर बहुत ही आराम के समझ जा सकता है।
मुकेश जी ने क्लिष्टता का सहारा न लेकर अपने आसपास की चीज़ों का सहारा लेकर जिन बातों को समझाया है, वो सचमुच बधाई के पात्र है। उनके कहे अनुसार,”दोस्ती में buttering allowed नहीं है” इसलिए बिल्कुल सच्ची बात कहूँगी.. उनकी सभी कवितायें अच्छी लगी, लेकिन उनमे से भी जो मेरी पसंदीदा कविताओं में रही, वो हैं- हमिंग बर्ड, आवाज, लाइफ इन मेट्रो, कैनवस, बूढ़ा वीर, मेरे अंदर का बच्चा, मेरा शहर, जूते के लेस, डस्टबिन, सिमरिया पुल, सड़क पे बचपन।
और अंत में, जिस कविता ने जीवन जीने की इच्छा और जिजीविषा को सलाम किया, और हमिंग बर्ड को पूरा का पूरा सम अप किया और मेरे व्यक्तिगत चुनाव के हिसाब से शो स्टोपर रहा.. वो है ‘मनीप्लांट’।
“मनी प्लांट की लताएँ
हरी-भरी होकर बढ़ गयी थीं
उली पड़ रही थीं गमले के बाहर
तोड़ रही थीं सीमाएँ
हरी-भरी होकर बढ़ गयी थीं
उली पड़ रही थीं गमले के बाहर
तोड़ रही थीं सीमाएँ
शायद पौधा अपने सपनों में मस्त था
चमचमाए हरे रंग में लचक रहा था
ढूंढ रहा था उसका लचीला तना
आगे बढ़ने का कोई जुगाड़
मिल जाये कोई अवलंब तो ऊपर उठ जाए
या मिल जाए कोई दीवार तो उसपर छा जाए
चमचमाए हरे रंग में लचक रहा था
ढूंढ रहा था उसका लचीला तना
आगे बढ़ने का कोई जुगाड़
मिल जाये कोई अवलंब तो ऊपर उठ जाए
या मिल जाए कोई दीवार तो उसपर छा जाए
पर तभी मैंने हाथ में कटर लेकर
छाँट दी उसकी तरुणाई
गिर पड़ी कुछ लंबी लताएँ
जमीन पर,निढाल होकर
ऐसे लगा मानो हरा रक्त बह रहा हो
कटी लताएँ, थीं थोड़ी उदास
परन्तु थीं तैयार, अस्तित्व विस्तार के लिए
अपने हिस्से की नयी ज़मीन पाने के लिए
जीवनी-शक्ति का हरा रंग वो ही था शायद
छाँट दी उसकी तरुणाई
गिर पड़ी कुछ लंबी लताएँ
जमीन पर,निढाल होकर
ऐसे लगा मानो हरा रक्त बह रहा हो
कटी लताएँ, थीं थोड़ी उदास
परन्तु थीं तैयार, अस्तित्व विस्तार के लिए
अपने हिस्से की नयी ज़मीन पाने के लिए
जीवनी-शक्ति का हरा रंग वो ही था शायद
और गमले में शेष मनी प्लांट
था उद्धत अशेष होने के लिए
सही ही तो है, जिंदगी जीने की जिजीविषा
था उद्धत अशेष होने के लिए
सही ही तो है, जिंदगी जीने की जिजीविषा
आखिर जीना इतना कठिन भी नहीं।”
100/- मूल्य की हमिंग बर्ड सारी ऑनलाइन साइट्स यथा अमजन, इन्फिबिम और फ्लिप्कार्ट पर डिस्काउंट पर उपलब्ध है
समीक्षा — श्रीमती शारदा झा
अच्छी समीक्षा !