कविता

जागो हिन्दू !

जागो हिंदू देखो क्या हो रहा धर्म परिवेश में
हिंदू धर्म संकट में पड़ा है धर्म-निरपेक्ष देश में

हमारा सनातन धर्म हिंदू है दुनिया में सबसे महान
हमारे वेद-शास्त्रों से सिख लेता है सारा जहान
हमारे विकसित धर्म से अभी बहुत पिछे है विज्ञान
नामुमकिन चमत्कार किये हैं अवतरित होके यहाँ भगवान

अधर्मी को नाश किये आकर मानव के भेष में
जागो हिंदू देखो क्या हो रहा धर्म परिवेश में

इस महान धर्म के होके भी अपना धर्म छुपा रहे हैं
वे अपने तुक्ष धर्म पर नाज दिखा रहे हैं
वसुधैव कुटुम्बकम् का हम पाठ पढ़ा रहे हैं
वे गौ माता के माँस खाकर हमें चिढ़ा रहे हैं

याद है क्या कहे हैं कृष्ण गीता के उपदेश में

जागो हिंदू देखो क्या हो रहा धर्म परिवेश में

हिंदू एकता बनाके अपने धर्म में क्रांति लाओ
भारत क्या पूरे दुनिया में हिंदू ध्वज लहराओ
हिंदू है विश्व-विधाता ये सावित कर दिखलाओ
हिंदु है तो विवेकानंद की बातों को अपनाओ

पढ़ो एकबार हिंदू को वे कहें हैं क्या संदेश में
हिंदू धर्म संकट में पड़ा है धर्मनिरपेक्ष देश में

दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।