कविता

यूँ हीं

कोई भी किसी का
अपमान या सम्मान कर
अपने संस्कारों का
परिचय देता है ।
धैर्य सबके हिस्से
कहाँ खुदा देता है।।

=
आँख से टूट
बंदनवार तनी
बरौनी पर
गम आँसू छोड़
पोली बांसुरी
गुनगुनाने वाली
जिंदगी धुन
हृदय तान संग
विरला बजाता है

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “यूँ हीं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कोई भी किसी का
    अपमान या सम्मान कर
    अपने संस्कारों का विभा जी , बिलकुल सही बातें लिखी . बहुत अच्छी लगीं .
    परिचय देता है ।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी क्षणिकाएं !

Comments are closed.