डिपेंड कौन?
“हाय”
“हाय”
“कैसी हो”
“बढ़िया, आप कैसी हो”
“मैं भी ठीक हूँ”
“कहाँ रहती हो, आजकल दिखती ही नहीं?”
“हाँ यार वो भाई की शादी है ना थोड़ी शॉपिंग में बिजी थी”
“अच्छा पर ये क्या जादू किया है बड़ी फिट लग रही हो”
“अरे यार कुछ नहीं बस जिम ज्वाइन किया हुआ है”
“नहीं यार दिन-रात का फर्क लग रहा है दस साल छोटे लग रही हो”
“हाँ अभी थोडा ध्यान दे पा रही हूँ खुद पर, यहाँ थी तो बस सारा दिन सास-ससुर की जी हुजूरी में ही निकल जाता था, बच्चों का स्कूल ,होमवर्क उफ्फ़”
“छोटी वाली कैसी है? उससे तो कभी मिलना ही नहीं होता, लगता ही नहीं यहाँ रह रही है इत्ते सालों से”
“हाँ यार यही हाल है ऑफिस जानेवालों का. वो तो अच्छा हुआ पापा जी ने टाइम से अलग घर ले दिया था नहीं तो आजकल के रेटों में तो हालत खराब हो जाती”
“ह्म्म्म्म”
“मैंने तो पापा से पहले ही कह दिया था कामकाजी बहू ला रहे हो. मैं नहीं खटने वाली उसके सामने, मैडम जी शाम को आयें छः बजे और मैं लगी रहूं सारा दिन”
“आज छुट्टी पर थी क्या? अभी ड्राइवर के साथ जा रही थी”
“हाँ आज पापा की पहली बरसी थी ना, मैं भी सुबह से यहीं लगी हुई हूँ पंडितों का खाना था।”
“आपकी ननद दिखी थी”
“वो तो आती ही रहती है हर दूसरे तीसरे दिन आ जाती है”
“तो घर कौन संभालता है?”
“घर का क्या है बच्चों को साथ ले आती है, सास साथ रहती नहीं है।”
“और आंटी जी (सास) ठीक है”
“हाँ ठीक ही है, अब क्या ठीक होंगी वो”
“क्यों क्या हुआ?”
“यार इतनी डिपेंड लेडी मैंने अपनी जिंदगी में नहीं देखी”
“कैसे?”
“पापा थे तो वो उनको ब्रेकफास्ट कराके दवाई खिलाके ऑफिस जाते थे।अब नौकरानी करती है सारा।”
“और अब तो दो-दो भाभियाँ हो जायेंगी आपके भी”
“हाँ यार अब मम्मी को भी थोड़ा सहारा हो जायेगा”
“क्यों मम्मी को तो सहारा ही था आपकी भाभी साथ ही रहती है ना”
“रहती तो साथ ही है पर बड़ी ढीली है, खुद के बच्चों का ही नहीं होता उससे”
“आपकी बेटी ने तो बड़ी हाईट निकाल ली है, कल स्कूल बस का वेट कर रही थी तब देखा था”
“हाँ, इस उम्र में हार्मोनल चेंजेज आते हैं ना, बड़ा डर लगता है यार”
“भाईसाहब तो पहचाने ही नहीं जा रहे आजकल ”
“अरे उनको हार्ट प्रॉब्लम है ना इसीलिए थोडा खाने-पीने पर कंट्रोल किया है, उन्होंने हेयर ट्रांसप्लांट भी करवाया है उससे लुक में बहुत चेंज आ गया है”
“आओ ना घर चलते हैं”
“नहीं यार अभी ड्राई-क्लीन के कपड़े लेने जा रही हूं”
“ओके फिर मिलते हैं कभी”
“ओके बाय”
15 दिन बाद चौकीदार ने घंटी बजाकर बताया, आंटी चल बसी हैं. चलावा 10 बजे है।
कहानी अच्छी है, लेकिन भाषा में बहुत सुधार की आवश्यकता है.
यह जय विजय की वेबसाइट पर पहली रचना है जिसमें अंग्रेजी के रोमन लिपि में लिखे गए शब्दों की भरमार है. कृपया ऐसी भाषा से बचें. जहाँ तक संभव हो हिंदी के सरल शब्दों का प्रयोग करें. यदि बोलचाल के अंग्रेजी शब्द का प्रयोग आवश्यक हो, तो उसे नागरी लिपि में ही लिखें, जैसे office की जगह ऑफिस या आफिस.
मैं इसमें कुछ सुधार कर रहा हूँ.
जिस माहौल के ये संवेदनहींन लोग बात कर रहे हैं उसके हिसाब से मुझे यही उपयुक्त लगी। सुधार के लिए तो आप है ही धन्यवाद