गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

pic3ज़िन्दगी में नित नये अब राग गुंजाने लगे
नित नये रंगों में नूतन स्वप्न हर्षाने लगे

भर दुपहरी कूजती कोयल फुदकती डाल पर
ज़िन्दगी को गुलमुहर के फूल अब भाने लगे

खिलखिला कर हँस रहे हैं लाल-लाल अँगार से
हर धड़कते हृदय को ये शीत पहुँचाने लगे

जेठ की तपती दुपहरी में ये कैसे झूमते,
कष्ट हँसकर के सहो ये सहज समझाने लगे

अरुण पुष्पों से लदी हर शाख है इतरा रही
चार -दिन की ज़िन्दगी जी लो ये समझाने लगे

राजशाही गुल मुहर के फूल जब खिलते यहाँ
अपनी ही धुन में अनोखा राग सब गाने लगे

कवि हृदय ने प्रेम वश अनमोल मोती रच दिये
मन में यादों के हजारों पुष्प मुस्काने लगे

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.

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