इतिहास

कुलिन्द गणराज्य : मुद्राशास्त्रीय अनुशीलन

परवर्ती मौर्य सम्राटों के शासनकाल में सत्ता की कमजोरी का लाभ उठाकर प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में गणराज्यों का अस्तित्व पुनः विद्यमान हो गया था जिसका प्रमाण उन शासकों द्वारा प्रचलित मुद्राएँ हैं. पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा व उत्तराखंड राज्य के विभिन्न स्थानों से तत्कालीन कुलिन्द गणराज्य की ऐतिहासिक मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं जिनके इतिहास का स्रोत केवल मुद्राएँ ही हैं. उत्तराखंड प्रान्त में गढ़वाल मंडल के अंतर्गत पौडी गढ़वाल ज़नपद के सुमारी, भट्टीशेरा, देवलगढ़ एवं इसी क्रम में टिहरी ज़नपद के अठूर तथा उत्तरकाशी ज़नपद के पुरोला स्थानों से कुलिन्द शासकों की मुद्राओं की निखात निधि प्राप्त हुई है जो तत्कालीन इतिहास पर व्यापक रूप से प्रकाश डालती है. इसी प्रकार कुमायूँ मंडल के अंतर्गत नैनीताल व अल्मोड़ा के कुछ स्थलों तथा उधमसिंह नगर ज़नपद के काशीपुर स्थान से उक्त गणराज्य की मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं जिनसे ज्ञात होता है कि सम्पूर्ण उत्तराखंड क्षेत्र पर कुलिन्द गणराज्य का निर्विवाद रूप से अधिकार था.

इस गणराज्य का विस्तार पश्चिम में पंजाब की सतलज नदी से पूर्व में कुमायूँ की काली नदी तक तथा उत्तर में पीर पंजाल श्रेणी से लेकर दक्षिण में शिवालिक श्रेणी के मध्य एक विस्तृत भूभाग पर था. इसके अंतर्गत हिमाचल प्रदेश का ज्वालामुखी क्षेत्र, हरियाणा का अम्बाला ज़नपद, उत्तर प्रदेश का सहारनपुर ज़नपद व उत्तराखंड के गढ़वाल व कुमायूँ मंडल कुलिन्द शासकों की सत्ता के अधीन थे.भारत में हिन्द –यवनों के आक्रमण के समय इन शासकों की रज़त व ताम्र मुद्राएँ कलात्मक रूप से यवनों की मुद्राओं से प्रतिस्पर्द्धा करने लगी थीं. वर्तमान में ये मुद्राएँ भारत के विभिन्न संग्रहालयों व ब्रिटिश संग्रहालय, लन्दन में संग्रहीत हैं.

लगभग १०० ईसा पूर्व में कुलिन्द गणराज्य में अमोघभूति नामक शासक सिंहासन|रूढ़ हुआ जिसने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की.उसने यवनों के आक्रमण से मध्य हिमालय के व्यास, सतलज व यमुना नदी के कांठे तथा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर क्षेत्र व उत्तराखंड के गढ़वाल व कुमायूँ के भूभागों को मुक्त कराने में अपना अप्रतिम योगदान दिया था.लगभग ४० वर्ष के दीर्घ शासन के पश्चात् ६० ईसा पूर्व में उसकी मृत्यु हो गयी.

कुलिन्द गणराज्य की मुद्राएँ सांचे में ढ़ालकर तथा ठप्पे से निशान लगाकर बनायी गयी हैं.रज़त मुद्राएँ गोलाकार हैं तथा सामान्यतः ३४ ग्रेन भार की हैं, ज़बकि ताम्र मुद्राएँ ५७ ग्रेन की व गोलाकार हैं. उक्त मुद्राओं पर ब्राह्मी व खरोष्ठी दोनों लिपियों में लेख अंकित हैं.

मुद्रा के अग्रभाग पर ब्राह्मी लिपि में लेख ‘राज्ञः कुणिदस अमुघभुतिस्य [अमोघभूतिस्य] 20150324174831महाराजस्य’ उत्कीर्ण है. दक्षिणमुखी मृग [हिरन] तथा उसके ऊपर लांछन चिह्न अंकित है तथा सम्मुख स्थानक देवी [संभवतः लक्ष्मी ] का अंकन हुआ है. पृष्ठ भाग पर खरोष्ठी लिपि में लेख ‘महरजस रयं कुणिदस अमुघभुतिस[अमोघभूति ]’अंकित है जो ब्राह्मी लिपि का रूपान्तरण है. छत्र युक्त षटकूट, ऊपर नन्दिपद, बायीं ओर स्वस्तिक चिह्न, नीचे इन्द्रयष्टि, दायीं ओर चैत्य वृक्ष तथा निचले भाग में सर्पिलाकार रेखा का स्पष्ट अंकन हुआ है.

उक्त मुद्राओं के अनुशीलन से विदित होता है कि अमोघभूति एक कुशल शासक होने के साथ –साथ महान राजनयिक भी था जिसने ‘महाराज’ उपाधियुक्त सिक्के चलाये थे. वह समकालीन पड़ोसी राजाओं की नीतियों को जानने में बहुत दक्ष था. हरियाणा के वर्तमान सुघ [स्रुघ्न] नामक स्थान को उसने अपने राज्य की राजधानी बनाया. ऐसा प्रतीत होता है कि अमोघभूति के मरणोपरांत कुलिन्दों ने गोविष|ण[काशीपुर] क्षेत्र को अपनी नयी राजधानी बनाया जो तत्कालीन उत्तरी भारत का प्रमुख केंद्र था. कालान्तर में शकों के आक्रमण के फलस्वरूप उक्त गणराज्य का पतन हो गया.

वेद प्रताप सिंह

वेद प्रताप सिंह

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2 thoughts on “कुलिन्द गणराज्य : मुद्राशास्त्रीय अनुशीलन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    इत्हासिक लेख बहुत पसंद आया और इस से भरपूर जानकारी मिली .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा और जानकारी पूर्ण लेख. प्राचीन काल के इतिहास का सही और प्रमाणिक परिचय हमें तत्कालीन सिक्कों और मुद्राओं से मिलता है. कुलिंद नामका कोई गणराज्य कभी था यह मुझे भी पहली बार इसी लेख से पता चला.
    इससे यह भी सिद्ध होता है कि हमारे देश के नेहरूवादी वामपंथी इतिहास-विकारों ने देश के कितने बड़े इतिहास को छिपाकर रखा है. उन्होंने केवल इस्लामी हमलावरों और विलासी मुग़ल बादशाहों के इतिहास को ही महिमामंडित करके सामने रखा है. उनके साथ जो भारतीय इतिहास वास्तव में गौरवशाली था, उसको जानबूझकर अन्धकार में रखा हुआ है. अब उस इतिहास को सबके सामने लाया जाना चाहिए.

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