गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल – खत्म है कहानी

यूँ तो चरागों से खेलकर रात गुजारी थी100_2566
पता पूछा जो रोशनी का तो मालूम न था

हर फितरत की तक़दीर से रूबरू थे हरदम
लिखा क्या है हाथों में मालूम न था

सिर्फ आईने की तस्वीर के शौक़ीन थे हम तो
उसमे चेहरा कैसे आया मालूम न था

मुस्कुराने से कोई हमें भी खुश समझ लेता
तू देखकर रो देगी ये मालूम न था

तिरछी नजरों से हमने भी तुझे मुड़ते हुए देखा
ये रुखसत ए अदा थी मालूम न था

यूँ तो तारे गिन गिन ही रातें गुजर रही थी
ये इन्तजार है तेरा मालूम न था

हमें इकरार ए मोहब्बत में यकीं न था कभी
तू इन्तजार करेगी मालूम न था

हम दास्ताँ बन चुके थे किसी किताब के पन्ने की
अब खत्म है कहानी मालूम न था

सचिन परदेशी ‘सचसाज’

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

2 thoughts on “गज़ल – खत्म है कहानी

  • विजय कुमार सिंघल

    ग़ज़ल नुमा बढ़िया कविता !

    • सचिन परदेशी

      धन्यवाद सिंघल साहब ! एवं इस कद्रदानी के लिए शतश: आभार !

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