राजनीति

मीडिया की हकीकत

मैं अरविन्द केजरीवाल का समर्थक नहीं हूं, बल्कि उनके घोर विरोधियों में से एक हूं। पाठकों को याद होगा – मैंने उनके खिलाफ कई  लेख लिखे हैं। लेकिन मीडिया के खिलाफ़ उनके द्वारा जारी किए गए सर्कुलर का मैं समर्थन करता हूं। कारण यह है कि भारत की मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक मीडिया मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ चुकी है। लोकतंत्र में विरोध का अपना एक विशेष स्थान होता है लेकिन अंध और पूर्वाग्रहयुक्त विरोध का प्रतिकार होना ही चाहिए। न्यूज चैनलों को भारत और भारतीयता से गहरी नफ़रत है।  अपनी इस मानसिकता के कारण वे हिन्दी, हिन्दुत्व, आर.एस.एस, शिवसेना, अकाली दल, बाबा रामदेव, हिन्दू धर्मगुरु, भारतीय परंपरायें और देसी नेताओं को नित्य ही अपने निशाने पर लेती हैं।

बंगाल में एक नन के साथ दुर्भाग्यपूर्ण बलात्कार हुआ, मीडिया ने प्रमुखता से समाचार दिया, खुद ही मुकदमा चलाया और खुद ही फ़ैसला भी दे दिया। घटना के लिए मोदी सरकार और कट्टरवादी हिन्दू संगठनों को दोषी करार दिया। सरकार ने जांच की। पता लगा कि रेप करने वाले बांग्लादेशी मुसलमान थे। दिल्ली के एक चर्च में एक मामूली चोरी की घटना हुई। मीडिया ने इसके लिए मोदी एवं आर.एस.एस. को कटघरे में न सिर्फ़ खड़ा किया बल्कि मुज़रिम भी करार दिया। आगरा में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। बाल एक चर्च की खिड़की के शीशे से टकरा गई। शीशा टूट गया। मीडिया ने इसे क्रिश्चनिटी पर हमला बताया। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बने हैं, मीडिया ने एक वातावरण बनाया है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता खतरे में है। नरेन्द्र मोदी का एक ही अपराध है कि वे आज़ाद भारत के पहले पूर्ण स्वदेशी प्रधान मंत्री हैं – चिन्तन में भी, व्यवहार में भी।

मीडिया की चिन्ता का दूसरा केन्द्र अरविन्द केजरीवाल बन रहे हैं। दिल्ली में उनकी अप्रत्याशित सफलता से वही मीडिया जो उन्हें सिर-आंखों पर बैठाती थी, अब बौखलाई-सी दिखती है। कारण स्पष्ट है – अरविन्द केजरीवाल में ही मोदी का विकल्प बनने की क्षमता है। धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल किनारे हो रहे हैं और कांग्रेस की राजमाता एवं शहज़ादे अपनी चमक खोते जा रहे हैं। केजरीवाल भी मीडिया को भा नहीं रहे हैं क्योंकि मोदी की तरह वे भी एक देसी नेता हैं जो अपने सीमित शक्तियों और साधनों के बावजूद आम जनता की भलाई सोचते हैं। मैंने बहुत सोचा कि आखिर मीडिया भारतीयता के पीछे क्यों हाथ धोकर पड़ी रहती है? मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए मेरे एक मित्र श्री विन्देश्वरी सिंह ने जो जियोलोजिकल सर्वे आफ़ इन्डिया के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उनसे प्राप्त सूचना का सार निम्नवत है –

सन २००५ में एक फ्रान्सिसी पत्रकार फ़्रैन्कोईस भारत के दौरे पर आया। उसने भारत में हिन्दुत्व पर हो रहे अत्याचारों का अध्ययन किया और बहुत हद तक इसके लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया। उसने काफी शोध किए और पाया कि भारत में चलने वाले अधिकांश न्यूज चैनल और अखबार भारत के हैं ही नहीं। उसने पाया कि —

१. दि हिन्दू … जोशुआ सोसायटी, बर्न स्विट्जरलैंड द्वारा संचालित है।

२. एनडीटीवी – गोस्पेल आफ़ चैरिटी, स्पेन, यूरोप द्वारा संचालित।

३. सीएनएन, आईबीएन-७, सीएनबीसी – साउदर्न बेप्टिस्ट चर्च यूरोप द्वारा संचालित

४. टाइम्स आफ़ इन्डिया ग्रूप – बेनेट एन्ड कोलमैन यूरोप द्वारा संचालित। इसके लिए ८०% फ़न्डिंग क्रिश्चियन कौन्सिल द्वारा तथा २०% फ़न्डिंग इटली के राबर्ट माइन्दो द्वारा की जाती है। राबर्ट माइन्दो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के निकट संबंधी हैं।

५. हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रूप – पहले यह बिरला ग्रुप का था। अब इसका भी स्वामित्व टाइम्स आफ़ इन्डिया के पास है।

६. दैनिक जागरण ग्रूप – इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा के सांसद हैं। सभी को ज्ञात है कि समाजवादी पार्टी मुस्लिम परस्त है।

७. दैनिक सहारा – जेल में बंद सुब्रतो राय इसके सर्वेसर्वा हैं जो मुलायम और दाउद के करीबी रहे हैं।

८. आन्ध्र ज्योति – हैदराबाद की घोर सांप्रदायिक पार्टी MIM ने इसे खरीद लिया है।

९. स्टार टीवी ग्रूप – सेन्ट पीटर पोंटिफ़िसियल चर्च, यूरोप द्वारा संचालित

१०. दि स्टेट्समैन – कम्युनिस्ट पार्टी आफ़ इन्डिया द्वारा संचालित।

………………………………….. यह लिस्ट बहुत लंबी है। किस-किस का उल्लेख करें?

जिस मीडिया की फ़न्डिंग विदेश से होती है वह भारत के बारे में कैसे सोच सकती है? यही कारण है कि यह मीडिया शुरु से ही इस धरती और धरती-पुत्रों को अपनी आलोचना के निशाने पर रखती है। देर-सबेर केन्द्र सरकार को भी इनपर लगाम लगानी ही पड़ेगी।

 

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

2 thoughts on “मीडिया की हकीकत

  • Bipin Kishore Sinha

    Because they are not blessed with money power of churches, smugglers and western powers

  • विजय कुमार सिंघल

    आपकी बात में दम है. अधिकांश मीडिया पर विदेशी कंपनियों और व्यक्तियों का प्रभुत्व है. उन पर लगाम लगाना जरुरी है, लेकिन केजरीवाल ने जिस प्रकार मीडिया पर एक तरफ़ा हमला सिर्फ इसलिए बोला है कि वह केजरीवाल की पोल खोलता है, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता. इसमें घोर तानाशाही की झलक है. मीडिया तो मोदी जी का भी विरोधी रहा है, परन्तु कभी मोदी जी ने ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और न उसकी स्वतंत्रता में खलल डाला.
    दूसरा प्रश्न यह उठता है कि देशी भारतीय लोगों को अपने मीडिया चैनल और समाचार पत्र बनाने से किसने रोका है. क्यों जैन टीवी जैसे चैनल असफल हो गए और क्यों सुदर्शन टीवी जैसे चैनल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं?

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